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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( १६२ ) शास्त्र में अत्यन्त हित कारी पदार्थ इसे माना है (बीमारी की अवस्था में) उड़दों के विकार का पालन ज्वरांकुश है। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चना | ठंडा है। बादी करता है । मंदाग्नि करता है । दस्तावर भी है । पचने में भारी है। सेके चने खून को सुखाते हैं अतः उनके साथ खांड, गुड़, व मखाने खाने चाहिये । हरे चने कफ कर्त्ता है । ठंडा मूत्रकृच्छ पित्त प्रमेह पीनस पथ्य अपथ्य वायु आध्मान दस्तों की बीमारी मंदाग्नि पेट शूल चनों के विकार का पालन धतूरा है । धतूरा स्वयं जहर है अतः विना वैद्य की सलाह के न लेवें। चने में पौष्टिक तत्व बहुत है पर बहुत सेवन से उलटा वीर्य को हानि पहुंचती है । संके धान्य | चावलों की फूली - हलकी, शीघ्र पचने वालो, यमन, तृषा मैं हितकर होतो है । जब अन्न न पचता हो वा पेट में नहीं टिकता हो तब चावलों की फूली जल में भीगो कर उसका पानी वा भोगी फूली खिलाते हैं। अजीर्ण, श्रग्निमंद, श्रतिसार में यह पथ्य है । For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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