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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वे आद्यान्त पढ़े बिना नहीं रहेंगे, क्योंकि -इनमें किसी शिक्षाप्रद रसमय उपन्यास सी रोचकता हैं, रोचकता के साथ जीवन को सद्गुणों की सुरभि से भरकर, सुशोभित करने की अनुपम क्षमता भी हैं। जैसे कोई श्रान्त, कलान्त पथिक पुष्पवाटिका में पहुँचकर सुगन्धित जल-वायु की लहरों से प्रफुल्लित और स्वस्थ हो उठता हैं, वैसे ही ये पत्र-पाठक के भव-श्रम को हरेंगे, इससे वह अन्तर्मुखी होकर मन्दिर में बिराजमान करूणासागर वीतराग परमात्मा के दर्शन अपने मन मन्दिर में कर पाने में समर्थ बन पायेगा। भोगवादी युग की विभीषिका के जाल में छटपटाते लोगों को अध्यात्म का अमृत पिलाने वाले ये पत्र आत्मिक उर्जा को विकसित करने में पूर्णतया सक्षम हैं। इससे चेतना की संवेदना के अनेक पुष्प-आस्तिकता, वैराग्य, विवेक, मैत्री, दया अहिंसा, सदाचार सहृदयता, पापों से भय, प्रस्फुटित होकर जीवन जगत् को सुखशान्तिमय बना देंगे। कर्मठ कर्मयोगी आचार्य भगवंत की पत्र-लेखन शैली की उपमा वसंत ऋतु में खिली पुष्पवाटिका से देना उपयुक्त रहेगा क्योंकि-पन्न वांचन करते वक्त पुष्पवाटिका में विहार सा आनन्द प्राप्त होता हैं । कतिपय पत्रों का उल्लेख "भूमिका" में करके मैं पत्र शैली की रोचकता का परिचय सहदयी पाठकवृन्द को कराना चाहता हूँ। क्योंकि-वैसे तो सभी पत्र मंत्र-मुग्ध करनेवाली सुगन्ध के समान चित को प्रसन्न करते हैं मगर इस नन्हीं सी भूमिका में कतिपय पत्रों की रसवाहिता, आत्मरमणता, रसिकता, प्रभावसलिलसरितादी गुणों का जिक्र कर देना चाहता हूँ। शुभ संस्कार, सत्संगति, पारसमणि, पर उपदेशकुशल बहुतेरे, दीप जलाओ मन मन्दिर में, शान्तसुधारस, अनेकान्तदृष्टि, शुभ विचार, गंगाजल, शुभ कर्मविकास का स्वर्ण सोपान, शुद्ध स्वभाव, स्वर्वोत्तम जगत् सेवा, प्रेमाभक्ति, मौन की महिमा, विशालदृष्टि, दयालु-मातातुल्य-गीतार्थ गुरुवर विश्वएक बगीचा, परनिन्दा, विषवेलड़ी आदि, ईत्यादि, पत्रों में पुष्प-सौरभ बिखेरती ये पंक्तियाँ किसे प्रफुल्लित, प्रस्फुटित नहीं करती। सुक्ति शैली १. “वस्तुतः तलवार की धार पर चलना सरल हैं, किन्तु गुरु भक्ति करना । दुष्कर हैं।'' २. “दान से परस्पर एक-दूसरे का उपकार होता हैं।" ३. “दान से तीर्थकर पद की प्राप्ति भी होती हैं।" ४. “दान धर्म मुक्ति का सोपान हैं।" For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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