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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. “दुर्गुणों के नाश करने हेतु सद्गुणों का बार-बार चिन्तन-मनन-ग्मरणध्यान करना चाहिएँ।" ६. ज्ञानीजनों की अन्तिम खोज आत्मा का सहजानंद हैं। -रस मीमांसा रस मीमांसा के समस्त पत्र जैनदर्शन की सूक्ष्मता से परिपूर्ण हैं, परन्तु उनमें दर्शन का गाम्भीर्य साहित्य-रस में पककर मधुर बन गया हैं-जैसे १. “मन-वचन एवं काया के योग के बिना आत्म विकास की साधना नहीं हो सकती।" "-त्रिवेणी" २. “उद्यान में पुष्पित विभिन्न पुष्पों की भाँति मनुष्यभवोद्यान भी अनेक विचारों की महक से वातावरण को भर देता है।" "-विश्व एक बगीचा' । ३. “क्रोध व ईर्ष्यादि दुर्गुण-धारक लेखक अपने पत्र-पत्रिकादि में बारूद भर-कर वाचक वर्ग के हृदय में क्रोधादि दुर्गुणों की अधिकाधिक उत्पत्ति होवे-ऐसे लेख-लिखकर भाव-कसाई की पदवी का सरेआम अनुसरण करते हैं।' "- प्लेग के जन्तु" -गागर में सागर१. “सद्गुण-विहीन विद्वान व्यक्ति ज्वालामुखी की तरह होता हैं।" -दयालु-मातातुल्य-गीतार्थ गुरु २. “निष्काम भाव से धार्मिक कार्यो को अंजाम देनेवाले महात्मा-गण कभी दुःखी नहीं होते और ना ही शुभ-कार्यो से दूर रहते हैं।" "- निष्काम भाव से शुभ कर्म करे" ३. “दुर्जन-मनुष्यों की संगति से मानसिक संताप होता है।" “सत्संगती-पारसमणि' अलङ्कारिता "गुरुदेव के पत्रों में अलंकार की सुषमा मन को मोहित करती हैं। ये अलंकार पाठकवृन्द को सरलता से समझने में सहायक हैं:-जैसे कि-अनीति से प्राप्त प्रभुत्व भी प्रायः पूर्णिमा के चन्द्र की भाँति सदाकाल/सदैव टिक नही सकता" "-जीवन-पुष्प की सुगंध-नैतिकता" “आचार का स्वरूप एक तरह से नदी के आकार जैसा हैं, और विचार का म्वरूप मेध के जल जैसा हैं।" For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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