SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मा में परमात्मत्त्व का प्रभुत्व हैं। उसे प्रकटित करने के असंख्य अवसर है। सर्व जीवों में भी परमात्मत्त्व का प्रभुत्व है। अतः किसी के प्रति धर्म भेद या धर्म द्वेष धारण न करते हुए उसकी आत्मा में रहे असंख्य सद्गुणों के प्रति उसे आकर्षित करना चाहिए। मानव भले ही किसी भी दर्शन का अनुरागी...प्रेमी हो, लेकिन आखिर है तो वे भी आत्माएँ। अतः ऐसी प्रवृत्ति कदापि नहीं करनी चाहिए जिससे उक्त आत्माओं को शोक, भय, आवेग व संताप पहुँचे। विश्व की समस्त आत्माओं को आत्म-दृष्टि से देखनेवाला ऐसा विशाल दृष्टि धारक मानव वास्तव में जैन दर्शन की विशालता का लाभ सब को देने में समर्थ होता है। जैसे जैसे व्योम मंडल में ऊँची और ऊँची उडान भरने में आती है वैसे वैसे पृथ्वी पर रहे गहरे गड्ढे और उत्तंग पर्वत-शिखर । आपस में गले मिले दृष्टिगोचर होते हैं। ठीक उसी तरह आत्मा का उच्च श्रेणी का अनुभवज्ञान ज्यों ज्यों प्रकटित होता है त्यों त्यों पूर्व में माने हुए अल्प- स्वल्प मतभेद अथति ऊँच-नीचत्व प्रतिभासित नहीं होता। १२७ । For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy