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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समझे कि उन्हें आश्रव-हेतु संवर रूपमें परळित होते हैं, कभी मथ्यिा वविाद नहीं करें । में परिणत हुए हैं, ऐसा मध्यिा विवाद न करे। . अनुभव की शाला का विद्यार्थी बनना कोई सामान्य बात नहीं हैं । मनुष्य मात्र का एक अनुभव ही वास्तव में उत्तरोत्तर अनेक अनुभव कराने में समर्थ होता है । फलतः प्रायः अतंरग एवं बाह्य चारित्र्य प्राप्ति करने हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए ढीक वैसे ही चारत्र्यि धारकों को सरगात्व का भूलकर भी कभी दुरपयोग नहीं करना चाहिए ___ हमेशा आत्म-साध्य को परिलक्षित कर संज्वलन क्रोध, माया, मान एवं लोभ को प्रशस्य रुप में परिणत करने चाहिए । . आत्मा के शुद्ध धर्म का उपयोग धारणकर उसमें नित्यप्रति रमणता करनेवाले को उच्च परिणाम की धारा प्राप्त होती है । उसी तरह गीतार्थ गुरुदेव के प्रति राग धारण करने पर उसे आत्मा के आलम्बन स्वरूप में परिवर्तित कर सकते हैं । अंततोगत्वा आत्मा रूपी साध्य-रसिया का लक्ष्य तो वीतरागावस्था रूप होती है और वीतराग अवस्था के उपयोगी के लिए सराग संयम एक सोपान की तरह होता है। ११५ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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