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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिमान, माया, मोह, लोभ निंदा, प्रपंच एवं ईर्ष्यादि विविध दोषों का जडमूल से निर्मूलन करने लाला मनुष्य अनंत गुना उत्तम...श्रेष्ठ माना जाता है। प्रमादावस्था के हेतुओं का सर्वस्व परित्याग करने का उपदेश करनेवाले और अन्यजनों के सम्बन्ध में प्रमादावस्था में पंचायत करनेवाले लोग तो इस जगत में कई मिल जाते हैं। लेकिन अप्रमत्तावस्था को धारण कर दूसरों के लिए आदर्शवश दोषों का निर्मूलन हेतु निमित्त बने, ऐसे महात्मा विरले होते हैं। दोष दृष्टि के कारण अन्यों के मलिन चरित्र के जिनके मन पर संस्कार पडते हैं, ऐसे लोगों के जीवन में बिन बुलाये मेहमान की तरह अनेकानेक दोषों का समावेश हो जाता है। अतः ऐसे लोग अप्रमत्तावस्था की प्राप्ति अथवा उसकी स्थिरता करने में असमर्थ होते हैं। दोष-दृष्टि धारकों के समागम में जो आते हैं, ऐसे लोगों में अप्रमत्तावस्था का भाव प्रकट नहीं हो सकता। . ... अप्रमत्तावस्था में चित्त की स्थिरता हो जाने पर हृदय में शास्त्रों का सारांश अच्छी तरह प्रकट हो सकता है। अतः ऐसे अप्रमत्तावस्था धारक मुनिवरों के चरणों में हमारा, सदा-सर्वदा अभिवादन हो, नमन हो। १११ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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