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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22/पाण्डुलिपि-विज्ञान 'मत्स्य-पुराण' में लेखक के निम्नांकित गुण बताये गये हैं : सर्व देशाक्षराभिज्ञः सर्वशास्त्रविशारदः । लेखकः कथितो राज्ञः सर्वाधिकरणेषु वै ॥ शीर्षोपेतान् सुसंपूर्णन् शुभ श्रेरिणगतान् समान् । अक्षरान् वै लिखेद्यस्तु लेखकः स वरः स्मृतः ।। उपाय वाक्य कुशलः सर्वशास्त्रविशारदः । बह्वर्थवक्ता चाल्पेन लेखकः स्यान्नृपोत्तम ।। वाजाभिप्राय तत्त्वज्ञो देशकालविभागवित् । अनाहार्यो नृपे भक्तो लेखकः स्यान्नृपोत्तम ।। (अध्याय, 189) 'गरुड़ पुराण' में लेखक के ये गुण बताये गये हैं मेधावी वाक्पटुः प्राज्ञः सत्यवादी जितेन्द्रियः । सर्वशास्त्र समालोकी ह्यष साधुः स लेखकः ।। 1, लेखक शब्द पर कुछ और रोचक सूचना हमें डॉ. वासुदेवणरण अग्रवाल के लेख 'Notes from the Brahat Kathakosha' से मिलती है। उनका यह लेख 'The Journal of the United Provinces Historical Society, (Vol. XIX. पार्ट I-II, जुलाईदिसम्बर, १९४६) में प्रकाशित है। इसमें पृ. ८०-८२ में अनुभाग /३ में 'लेखक' शीर्षक से यह बताया है कि मौर्यों के समय से लेखक प्रशासकीय तन्त्र का एक सदस्य रहा। कौटिल्य ने संख्याक (Accountant) और लेखक (Clerk) का वेतन ५०० कार्षापण वार्षिक बताया है। जैसे-जैसे समय बीता, लेखक के दायित्व में भी वैसे-वैसे ही वृद्धि हुई। फ्लीट के अनुसार हस्तिन् के एक अभिलेख में लिखितञ्च' का पांचवीं शताब्दी में अभिप्राय कोई अभिलेख प्रस्तुत करना था, शिल्पकार (Engraver) के लिए उत्कीर्ण करने के लिए एक प्लेट पर मसौदा तैयार कर देना था। सातवीं शताब्दी के एक आदेश लेख (निर्माण्ड ताम्रपत्र अभिलेख) में लेखक' के उल्लेख से विदित होता है कि राजा के निजी सचिवों में वह सम्मिलित था और उसका अधिकार और कत्र्तव्य बढ गये थे। हरिषेण के कथाकोश में एक लेखक महारानी और मन्त्रियों के साथ राजभवन में उपस्थित हैं। उसकी उपस्थिति में महाराजा के पत्र आते हैं जिन्हें पढ़कर लेखक उसका अभिप्राय बनाता है। राजा ने किसी उपाध्याय के सम्बन्ध में लिखा था कि उसे सुगन्धित उबले चांवल. घी तथा मषी भोजनार्थ दिया जाय । लेखक ने 'मषी' का अर्थ बताया 'कृष्णांगार मषी' अर्थात् कोयले की काली स्याही घी में घोल कर चावल के साथ खाने को दी जाय । स्पष्ट है कि लेखक ने माष या मषी का यथार्थ अर्थ 'दाल' न बताकर काली स्याही बताया। पन महारानी के नाम था। उसे पढ़ने का और उसकी व्याख्या का दायित्व लेखक पर था। जब राजा को विदित हुआ तो उसने कृढभाज' को निकलवा दिया। यह २४वीं कहानी में है। इसी प्रकार की दो अन्य कहानियां हैं. दोनों में पत्र महारानी के नाम है। पढना और व्याख्या करना या अर्थ बताना लेखक का काम है। एक में लेखक ने स्तम्भ (खम्भों) के स्थान पर 'स्तभ' पढ़ कर अर्थ किया बकरी । अत: राजाज्ञा मारकर एक हजार खम्भों के स्थान पर एक हजार बकरियां खरीदी गयीं। एक ऐसे ही पत्र में लेखक ने 'अध्यापय' को 'अन्धापय' पढ़ा और राजकुमार को अन्धा कर दिया। मंत्रीगण और महारानी को उस अर्थ की समीचीनता आदि से कोई लेना-देना नहीं। स्पष्ट है कि लेखक का दायित्व बहुत ब गया था। उसकी व्याख्या ही प्रमाण थी। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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