SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण/299 डॉ० गुप्त के इस उद्धरण से स्पष्ट होता है कि 'बसन्त-विलास' के काल-निर्धारण में भाषा-साक्ष्य के लिए 1330 से लेकर 1500 संवत् तक के काल-युक्त प्रामाणिक ग्रन्थों को लेकर उनसे तुलनापूर्वक बसन्त-विलास के काल का निर्धारण किया गया है। इसमें मुख्य साक्ष्य भाषा का ही है । भाषा का साक्ष्य सहायक के रूप में अन्य साक्ष्यों और प्रमाणों के साथ पा सकता वस्तुविषयक साक्ष्य वस्तु-विषयक साक्ष्य में वस्तु सम्बन्धी बातें आती हैं; उदाहरणार्थ, भारत के नाट्यशास्त्र के काल निर्धारण में एक तर्क यह दिया जाता है कि नाट्यशास्त्र में केवल चार अलंकारों का उल्लेख है : कारणे महोदय ने लिखा है : “(h) All ancient writers on alankara, Bhatti (between 500-650 A.C.), Bhamaha, दण्डी, उद्भट, define more than thirty figures of speech, भरत defines only four, which are the simplest viz. उपमा, दीपक, रूपक and यमक, भरत gives a long disquisition on metres and on the prakrits and would not have scrupled to define more figures of speech if he had known them. Therefore he preceded these writers by some centuries atleast. The foregoing discussion has made it clear that the ICANTET can not be assigned to a later date than about 300 A.C." 1.. अलंकारों की संख्या 2. अलंकारों की सरल प्रकृति 3. ज्ञात प्राचीनतम अलंकार-शास्त्रियों द्वारा बताये गये संख्या में 35 अलंकार। 4. यदि भरत को चार से अधिक अलंकार विदित होते या उस काल में प्रचलित होते तो वह उनका वर्णन अवश्य करते, जैसे छन्द-शास्त्र और प्राकृत भाषाओं का किया है : निष्कर्ष-उन के समय चार अलंकार ही शास्त्र में स्वीकृत थे ।। 5. चार की संख्या से 35-36 अलंकारों तक पहुंचने में 200-300 वर्ष तो अपेक्षित ही हैं । यह काणे महोदय का अपना अनुमान है-जिसके पीछे हैं नये अलंकारों की उद्भावना में लगने वाला सम्भावित समय । स्पष्ट है कि यहाँ 'वस्तु के अंश' को आधार मान कर काल-निर्णय में सहायता ली गई है। ___ इसी प्रकार 'वस्तु' का उपयोग काल-निर्धारण के लिए किया जा सकता है। पागिनि के काल-निर्धारण में डॉ० अग्रवाल ने वस्तुगत सन्दर्भो से ही काल-निर्धारण किया है, उपनिषद्, श्लोक श्लोककार मस्कंक्त नट सूत्र, शिशक्रन्दीय, यमसभीय, इन्द्रजननीय, अन्तरयन देश, दिष्ट मति, निर्वाण, कुमारी श्रमणा चीवरयते, औत्तराधर्य, श्रविष्ठा यवनानी लिपि तथा अन्य भी पाणिनि के सूत्रों में आने वाले शब्दों से काल-निर्धारण में 1. Kane, P.V.. Sahitya darpan-(Introductjon), p XI For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy