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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण्डुलिपि-विज्ञान और उसकी सीमाएँ/11 उनका विवरण भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस समस्त कार्य को आज वैज्ञानिक प्रणाली से करने के लिए 'क्षेत्रीय प्रक्रिया' की अनिवार्यता सिद्ध हो जाती है। वस्तुतः पांडुलिपि विज्ञान के लिए यह विज्ञान पहली आधार शिला है। पेलियोग्राफी लिपि-विज्ञान होता है। पांडुलिपि विज्ञान की दृष्टि से लिपि-विज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण विज्ञान है। इसका सैद्धान्तिक पक्ष तो लिपि के जन्म की बात भी करेगा। उसका विकास भी बतायेगा । व्यावहारिक पक्ष में यह विज्ञान उन कठिनाइयों पर विजय के उपायों की ओर भी संकेत करता है, जो किसी अज्ञात लिपि को पढ़ने में सामने आती है।' मिस्र की चित्रलिपि पढ़ने का इतिहास कितना रोचक है, उससे कम रोचक इतिहास भारत की प्राचीन लिपियों के उद्घाटन और पठन का नहीं है। इसी विज्ञान के माध्यम से हम विश्व की समस्त लिपियों के स्वरूप से भी परिचित होते हैं। इसी विज्ञान की सहायता से पांडुलिपि-विज्ञान विविध प्रकार की पांडुलिपियों की लिपियों की प्रकृति से परिचित होकर, उन्हें अपने उपयोग के योग्य बनाने की क्षमता पा सकता है। पांडुलिपियों में लिपि का महत्त्व बहुत है। लिपि के पढ़ने-समझने के सिद्धान्तों, स्थितियों और समस्याओं को हृदयंगम करना पांडुलिपि-विज्ञान का एक आवश्यक पक्ष है। लिपि-विज्ञान के व्यावहारिक दृष्टि से दो भेद किये जाते हैं : इनको अंग्रेजी में ऐपीग्राफी (Epigraphy) अर्थात् अभिलेख लिपि विज्ञान तथा पेलियोग्राफी (Palaeography) अर्थात् लिपि विज्ञान कहते हैं। डेविड डिरिजर का कहना है कि अभिलेख लिपि-विज्ञान यूनानी अभिलेख विज्ञान, लातीनी अभिलेख विज्ञान, हिब्रू अभिलेख विज्ञान जैसे विशेष क्षेत्रों में विभाजित हो जाता है । यह विज्ञान मुख्यतः उन प्राचीन अभिलेखों के अध्ययन में प्रवृत्त रहता है जो शिलाओं, धातुओं और मिट्टी जैसी सामग्री पर काट कर, खोद कर, या डालकर प्रस्तुत किये गये हैं। इस अध्ययन में अज्ञात् लिपियों का उद्घाटन (decipherment) तथा उनकी व्याख्या सम्मिलित रहती है। पेलियोग्राफी (Palaeography) भी एपीग्राफी की तरह क्षेत्रीय विभागों में बाँट दी गई है । इसका उद्देश्य मुख्यतः उस लेखन का अध्ययन है जो कोमल पदार्थों पर यथा कागज, चर्मपत्र, पेपीरस, लिनेन (linen) और मोमपट्ट पर या तो चित्रित किया गया है या उतारा (Traced) या चिह्नित किया गया है। यह क्रिया शलाका (स्टाइलस), कूँची, सेंटा या कलम से की जा सकती है। इस विज्ञान का भी अनिवार्य अंतरंग विषय लिपि उद्घाटन (decipherment) एवं व्याख्या भी है। स्पष्ट है कि उपर्युक्त दोनों विज्ञानों में मूल भेद 'लिप्यासन' के कठोर या कोमल होने के कारण है। कुछ विद्वान 'डिप्लोमैटिक्स' को भी पेलियोग्राफी की ही एक शाखा मानते हैं, इसमें शासकीय पट्टोंपरवानों की लिपि को पढ़ने का प्रयत्न सम्मिलित रहता है। यह विषय भी हमारे विज्ञान का अंतरंग विषय ही है। ___ 'भाषा-विज्ञान' भाषा का विज्ञान है । पांडुलिपि में लिपि के बाद भाषा ही महत्त्वपूर्ण होती है। भाषा-विज्ञान लिपि के उद्घाटन में सहायक होता है। यह हम आगे देखेंगे कि 1. देखिये अध्याय-"सिपि समस्या'। 2. डिरिजर, डेविड-राइटिंग पृष्ठ 20. For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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