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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पाठालोचन / 233 उसके नाम के प्रथम अक्षर के आधार पर भी 'संकेत' बनाया जा सकता है। पृथ्वीराज रासो की एक प्रति 'मो० ' संकेत इसलिए दिया गया है कि उसकी पुष्पिका में स्थान का उल्लेल है कि सं० 1697 वर्ष पोष सुदि अष्टमी तिथो गुरुवासरे मोहनपूरे । पाठ-साम्य के समूह की प्रणाली समस्त प्रतियों का वर्गीकरण पाठ-साम्य के आधार पर किया जा सकता है । इस वर्गीकरण का नाम भी उक्त प्रणालियों से दिया जा सकता है, फिर ग्रन्थांक भी । जैसे 'पद्मावत' के सभी प्राधार ग्रन्थों को पाँच पाठ- साम्य-समूहों में बाँट दिया गया और नाम रखा- 'प्र०' प्रथम समूह का, 'द्वि' द्वितीय समूह का, 'पंचम' पाँचवें समूह को । अब प्रथम समूह में दो ग्रन्थ हैं तो उनके संकेत होंगे 'प्र० 1' तथा 'प्र० 2' । पत्र संख्या प्रणाली Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब ग्रन्थ से और कोई सूचना नहीं मिलती जिसके आधार पर संकेत निर्धारित किया जा सकें तो पत्रों की संख्या को ही आधार बनाया जा सकता है । एक प्रति आठ पत्रों में ही पूरी हुई है, केबल इसी आधार पर इसे '०' कहा गया है । अन्य प्रणाली (क) डॉ० माताप्रसाद गुप्त ने एक अन्य प्रणाली का उपयोग किया है जिसे उन्होंने इस प्रकार स्पष्ट किया है " इस प्रति की पुष्पिका भी स्पष्टतः अपर्याप्त थी । किन्तु इसको देखने पर ज्ञात हुआ कि इसके कुछ पत्रे एक प्रति के थे और शेष पत्रे दूसरी प्रति के थे दोनों प्रतियाँ खंडित थीं और उन्हें मिलाकर एक पुस्तक पूरी कर दी गई थी- यही कारण है कि 19वीं संख्या के इसमें दो पत्र हैं । इसी पुनरुद्धार के आधार पर इस प्रति का संकेत 'पु० ' रख लिया गया है । 1 1. (ख) मूल पुष्पिका नष्ट हो गयी, पर ग्रन्थ-स्वामी ने किसी अन्य ग्रन्थ से वह पुष्पिका लिखकर जोड़ दी, तो स्वामी के नाम से ही ग्रंथ का संकेत दे दिया है । (ग) ऊपर की प्रणालियों का बिना अनुगमन किये अनुसंधानकर्त्ता स्वयं अपनी कल्पना से या योजना से कोई भी संकेत ग्रन्थ को दे सकता है । पाठ- प्रतियाँ ग्रन्थों के 'संकेत-नाम' निर्धारित हो जाने पर उनमें से प्रत्येक के एक-एक क्रमशः एक-एक कागज पर लिख लिया जाना चाहिये । प्रत्येक छन्द की प्रत्येक भी क्रमांक दे देना चाहिये, तथा छन्द का भी क्रमांक ( वह अंक जो उसके लिए दिया हो) देना चाहिये । यथा 101 पंडियउ पहुतउ सातमई मास (1) देव कह थान करी अरदास (2) तपीय सन्यासीय तप करह (3) गुप्त, माताप्रसाद ( डॉ० ) - बीसलदेव रास, पृ० 5 For Private and Personal Use Only छन्द को पंक्ति को ग्रन्थ में
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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