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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान / 109 अमा जु चंद दीवान स्वामिमि हरिभक्त है मानासिध सिंघ जिमि बल दंडन अनुरक्त है सिरमोर सीतलाल पालना प्रजा समाम्ह षंवरि विदिसि दिस गहत षरच आवदनी हत्थ है सब विधि सुजांन बुधिवान वरम नी लाल उदारचित । सवैयों के अंत में लिखा है “इति श्री नीतिसारे भाषायां कवि चद विरचितं दरागाजी श्री मनालालजी हेत”। यह प्रति प्रारम्भिक प्रति हो सकती है । इसमें अनेक स्थानों पर शुद्ध किया हुआ है। ऊपर हमने मिश्रबन्धु विनोद से चन्द अथवा चन्द्र और उनके नाम साम्य वाले कवियों की सूची दी है । उसका एक कारण सीधा यह है कि हमें हिन्दी में चन्द नाम तथा माम्य रखने वाले नाम के कवियों का एक साथ ज्ञान हो जायेगा किन्तु हमारा दूसरा उद्देश्य और मुख्य उद्देश्य यह जानना भी है कि जो ग्रन्थ हमें उपलब्ध हुए हैं और जिनके लेखक जो चंद नाम के कवि हैं उनका पता मिश्रबंधुओं तक मिल सका था अथवा नहीं। इसमें जिन चन्द नाम के कवियों का साहित्य मिला है उनमें से एक तो 18वीं शताब्दी का कवि है । शेष सभी 19वीं शताब्दी के विदित होते हैं । मिश्रबन्धु विनोद के चन्दबरदायी तो प्रसिद्ध हैं और प्रसिद्धि से भी अधिक विवादास्पद हैं । दूसरे चन्द हितोपदेश के लेखक हैं। जिनका रचना काल 1563 माना गया है । अर्थात् वे 16वीं शताब्दी के हैं । एक चन्दसखी ब्रजभाषी 1638 यानी 17वीं शती के हैं । 18वीं शती के कवि हैं एक चंद 'नागनौर की लीला' के लेखक जिनका रचनाकाल 1715 या 1756 है । दूसरे चंद पठान और सुलतान है जिनका समय 1761 है । एक चन्द्रसेन को 1726 के पूर्व का बताया गया है । एक चन्दलाल गोस्वामी 1768 के हैं । ये राधावल्लभी हैं। ये 18वीं शताब्दी के कवि हैं। 19वीं शताब्दी के कवियों में एक चन्द्रधन हैं 'भागवत सार भाषा' के लेखक जिनका समय 1863 बताया गया है । दूसरे चन्द्र राधावल्लभी हैं जिनका समय 1820 बताया गया है । एक चन्द्रदास को 1823 के पूर्व का, फिर एक चन्द्रलाल गोस्वामी राधावल्लभी जिनका कविता काल 1824 माना गया है । सम्भवतः ये वही चन्द्रलाल हैं जिनका कविता काल 1768 बताया गया है। फिर एक चन्द्रकवि सनाढ्य चौबे है, कविता काल 1828 । फिर एक चन्द्रहित राधावल्लभी जिनका रचनाकाल नहीं दिया है । एक चन्द जो गोसाई हैं जिनका रचनाकाल 1846 है। इतने 19वीं शताब्दी के कवि हैं। इनमें से हमारे संग्रह के पहले कवि और मिश्रबन्धु विनोद के 'नागनौर' की लीला के लेखक कवि चन्द एक ही हैं जिनकी रचना 'नागदमन' हैं । मिश्रबन्धुओं ने इसे 'नागनौर' लिखा है जो मूलतः 'नागदौन' होगा और इसका रचनाकाल सं० 1715 मिश्रबन्धु विनोद में बताया गया है । हम ऊपर देख चुके हैं कि 'वीणा' में भी इसी कवि की इसी कृति का उल्लेख है और उन्होंने भी संवत् 1715 रचना काल माना है । क्योकि संवत् की जो पंक्ति है उसे 'सत्रह से दस पंच' तक ग्रहण करें तो उससे 1715 ही रचना का संवत् निकलेगा । अतः 'नागदौन' की लीला के लेखक चन्द और हमारे चन्द 'नागदवन' के लेखक एक ही प्रतीत होते हैं । कृति के नाम में विभिन्नता है पर विषय से स्पष्ट है कि उसमें नागदमन या कृष्ण की नागलीला का वर्णन किया गया है । मिश्रबन्धु विनोद में For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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