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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- [११]मंत्र:-ओं हीं............. ................इति घृतस्नपनम् । अः-उदकचंदन................... अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।। ( दुग्धाभिषेक ४) सम्पूर्ण शारद-शशांकमरीचिजालस्पन्दरिवात्मयशसामिव सुप्रवाहैः । क्षीरैर्जिनाः शुचितरैरभिषिच्यमानाः । सम्पादयन्तु मम चित्तसमीहितानि ॥ २३ ॥ मत्रः-आ ही...............ात दुग्धाभिषकस्नपन ... ... ... ... इति दुग्धाभिषेकस्नपनम् । अर्घः-उदकचन्दन ... ... ... ... ..निर्वपामीति स्वाहा ॥ जेष्ठजिनवरजयमाला. ( भट्टारक ब्रह्मकृष्णकृत) अमरनयरिसम नयरि अयोध्या नाभिनरेन्द्र वसे निजबुध्या ।। सुरपति मेरुशिखर ले चढिया कनक कलश क्षीरोदधि भरिया ॥ तसघर राणी मरदेवी माया युगपति आदि जिनेश्वर जाया ॥ * ज्येष्ठमास अभिषेक जुकरिया अष्टोत्तर शत कुंभजु भरिया। भभकत जलधारा संचरिया ललितकलोल धरणि उतरयिया। जय जय सुरनि करी उच्चरिया इन्द्रइन्द्राणी सिंहासन धरिया।। अंग अनंग विभूषण धरिया कुंडलहार हरितमणि जडिया ॥ नोट:--- * जिस महीनमें अभिषेक किया जाय उस महीनेका नाम बोलना चाहिये। यह जयमाला दुग्धाभिषेकके समय बोली जाती है । प्रत्येक पंक्ति के बाद 'सुरपति मेरुशिखर' वाली पंक्तिको दुहराना चाहिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020534
Book TitlePanchamrutabhishek Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
PublisherZaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
Publication Year1958
Total Pages42
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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