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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तमन्तेन 327 अन्तर दी. नि. अट्ठ. 3.17; ... अन्तमन्ते गामे पहरन्तो दामरिकभावं प. 771; अन्तरं मज्झवत्था खणोकासोधिहेतूस व्यवधाने जानापेत्वा अनब्बेन निगमेपि जनपदेपि पहरति. अ. नि. विनात्थे च भेदे छिदे मनस्यपि, अभि. प. 802; ख. अट्ठ.2.72. 1. स्थानविषयक अन्तराल एवं दूरी - किं ते ऊरुनमन्तरस्मि अन्तमन्तेन अ., क्रि. वि., बहुत दूर-दूर तक, अन्तिम छोर सपिच्छितं कण्हखिप्पकासति, जा. अट्ठ. 5.188%3B तक, सुदूरवर्ती क्षेत्रों या विषयों तक - समई अन्तमन्तेन, 2. कालविषयक अन्तराल, समय का व्यवधान - यं एतस्मि इस्सरियं वत्तयामहं, बु. वं. (पृ.) 310; समुह अन्तमन्तेनाति अन्तरे भासति लपति निद्दिसति, इतिवु. 85; तस्स कम्मरस एत्थ चक्कवाळपब्बतं सीमं मरियादं कत्वा ठितं समदं अन्तं कुसलस्स, विपाकं दीघमन्तरं पे.व. 67; दीघमन्तरन्ति कत्वा इस्सरियं वत्तयामीति अत्थो, बु. वं. अट्ठ. 158. मकारो पदसन्धिकरो, दीघअन्तरं दीघकालन्ति अत्थो, पे. व. अन्तमसो अ., क. प्रायः पुष्टिकारक निपा. 'अपि' के अट्ठ. 45; यावतकेन अन्तरेन चम्पं गतागतं करिस्सति साथ प्रयुक्त [अन्तमशः/अन्तिमशः, अन्तशः], यहां सब्बानि तानि ... पातुकरिस्सति, म. नि. 2.3; 3. (क) तक कि, कम से कम, अधिक से अधिक - पिण्डपातो नाम __ भेद, फूट, विभाजन - इसीनमन्तरं कत्वा, भरुराजाति यागुपि भत्तम्पि खादनीयम्पि ... दसिकसुत्तम्पि, अन्तमसो मे सतं. जा. अट्ठ. 2.143; तत्थ अन्तरं कत्वाति छन्दागतिवसेन धम्मम्पि भणति, पारा. 360; अलङ्कारलोलताय ... अन्तमसो विवरं कत्वा, जा. अट्ठ. 2.144; अयं पनेत्थ अत्थो इसीनमन्तरं उदकतेलकेनपि केसे ओसण्डेत्वा मुखं परिमज्जति, सु. नि. कत्वा, ..... जा. अट्ठ. 5.114; (ख) छिद्र अथवा कमजोर अट्ठ. 2.30; अन्तमसो अत्तनो सरीरम्पि नानुगच्छति, ध, प. पक्ष, दोषपूर्ण पक्ष - ता तस्सा अन्तरं परियेसिंसु. जा. अट्ठ. अट्ठ. 1.94; ... अन्तमसो तिणकुटिकापि तिणसन्थारकम्पि, 5.440; अन्तरन्तरा खीरं अदत्वा एकसंवच्छर वीमंसन्तापिस्स उदा. अट्ठ. 186; ख, मत्तम्पि के साथ अन्वित होने अन्तरं न परिसंसु, जा. अट्ठ. 6.5; सा तस्स अन्तरं ओलोकेन्तियो पर, कम से कम केवल इतनी मात्रा में, अधिक से अधिक विचरन्ति, जा. अट्ठ. 6.297; आतिसङ्घस्स मन्तरन्ति अम्हेहि इतनी मात्रा में ही - पटिसेवति नाम यो निमित्तेन ... द्वीहि जनेहि विरहितस्स मम आतिसङ्घस्स अन्तरं छिड़, जा. अङ्गजातं अन्तमसो तिलफलमत्तम्पि पवेसेति, एसो पटिसेवति अट्ठ. 5.348; 4. भेद, वैविध्य, भिन्नता, विशेषता - किं नाम, पारा. 31; अयहि मूलसद्दो मूलानि उद्धरेय्य पनेत्थ, महाराज, अन्तरं को विसेसो कुमुदभण्डिकाय च उसीरनाळमत्तानिपीति आदीसु मूलमूले दिस्सति, उदा. सालीनञ्चा ति?, मि. प. 270; साविआणपानं, को अट्ठ. 22; ग. 'उपादाय' के साथ अन्वित होने पर, विसेसो किमन्तरं अभि. अव. 1174; 5. समूह के बीच का यहां तक कि, अमुक को लेकर भी, अमुक के सहित भी- अन्तराल, दो स्थानों के बीच में, किसी स्थान के अन्दर - ..., अन्तमसो कुन्थकिपिल्लिकं उपादाय पस्सन्ति, खु. पा. ..... भिक्खूनं अन्तरं पविसित्वा अम्हाकं सरभाणं न पापेन्ति, अट्ठ. 138; अहं इधोतिण्णं अन्तमसो सकुणिक उपादाय न जा. अट्ठ. 2.54; अभिवादेत्वाति छब्बण्णानं घनबुद्धरस्मीनं किञ्चि भुञ्जामि, जा. अट्ठ. 1.172. अन्तरं पविसित्वा ... विय, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.2; अन्तर' त्रि., [आन्तर], भीतर वाला, अन्दर में विद्यमान, 6. भीतर अर्थात् मन या चित्त - तत्थ यस्सन्तरतो न सन्ति आन्तरिक, भीतरी, आध्यात्मिक, चित्त की सन्तति से जुड़ा कोपाति यस्स अरियपुग्गलस्स अन्तरतो अभन्तरे अत्तनो हुआ - अहं खो, भन्ते, सम्मसामि अन्तरं सम्मसन्ति, स. नि. चित्ते ... अनेकभेदा ... न विज्जन्ति, उदा. अट्ठ. 131; 1(2).94; अन्तरं सम्मसन्ति अब्भन्तरं पच्चयसम्मसनं, स. 7. भेद, भीतर की बात, रहस्य, गुप्त बात, किसी विषय की नि. अट्ठ. 2.104; भिक्खु सिनातो अन्तरेन सिनानेनाति, म. भीतरी या वास्तविक स्थिति - देव, एते न मयह पत्ता, नि. 1.49; तत्थ अन्तरेन सिनानेनाति अब्भन्तरेन उपसागरस्स पत्ताति तं अन्तरं आरोचेसि, जा. अट्ठ. 4.73; किलेसवुवानसिनानेन, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).186%; इमं अन्तरं पभावतिया मा कथाहीति दळहं वत्वा उय्योजेसि, तयोमे भिक्खवे, अन्तरामला अन्तराअमित्ता अन्तरासपत्ता जा. अट्ठ. 5.278; मनुस्सा तं अन्तरं, अजानन्ता अहो अन्तरावधका अन्तरापच्चत्थिका, इतिवु. 60. पतिब्बता तिआदीनि वत्वा तं अनाचारित्थिं वण्णयिंसु, जा. अन्तर नपुं., [अन्तर], क. अट्ठ. में कारण, क्षण, चित्त, अट्ठ 2.99; ते तस्स वण्णसम्पत्तिमेव दिस्वा अन्तरं अजानन्ता वैमध्य तथा विवर आदि अनेक अर्थों के सूचक के रूप में। ... तं गण्हित्वा गच्छन्ति, जा. अट्ठ. 1.217. व्याख्यात - सन्निवेसो च सण्ठान, अथाब्भन्तरमन्तरं अभि. अन्तर द्रष्ट. अन्तो के अन्त.. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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