SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अन्तकरण भव. सु. नि. 339 जुतिमा मुतिमा पहूतपञ्ञ दुक्खस्सन्तकरं सु. नि. 544; जातिमरणस्स पारंग, दुक्खरसन्तकरा भवामरो सु. नि. 32 मानञ्च पहाय असेस, विज्जायन्तकरो समितावी ति., स. नि. 1 (1). 217; विज्जायन्तकरोति विज्जाय किलेसानं अन्तकरो, स. नि. अट्ठ. 1.238; स. उ. प. के रूप में जीवित दुक्ख के अन्त, द्रष्ट.. अन्तकरण नपुं० [अन्तकरण] अन्त कर देना, विनाश, उच्छेद या निरोध अन्तकिरियायाति वट्टदुक्खस्स अन्तकरणत्थाय, सु. नि. अट्ठ. 2.201. अन्तकिरिया स्त्री. कर्म. स. [अन्तक्रिया ], अन्त करा देने वाली क्रिया, उच्छेद, निरोध, विनाशअप्पेव नाम इमस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स अन्तकिरिया पञ्ञयेथाति, इतिवु. 64; न खो पनाहं आवुसो अप्पत्वा लोकस्स अन्तं दुक्खस्स अन्तकिरियं वदामि स. नि. 1 (1) 76: दुक्खस्सन्तकिरियाय, सा वे याचानमुत्तमाति सु. नि. 456: अथवा ते अन्तकिरियाय से वे जातिजरूपगा सु. नि. 730 अन्तकिरियायाति वहदुक्खस्स अन्तकरणत्थाय, सु. नि अट्ठ. 2.201. अन्तक्खर पु. कर्म. स. [ अन्त्याक्षर] अन्त में आया हुआ अक्षर या वर्ण - अन्तक्खरतो पुब्बक्खरं उपदा, अन्तक्खरतो पुब्बक्खर उपेक्खासज्ञ भवति, सर. 3.861. अन्तगण्ठाबाध पु०, तत्पु० स०, आंत या आहारनली में आई हुई मोच, आंत की ग्रन्थि से सम्बन्धित बीमारी तेन खो पन समयेन बाराणसेय्यकस्स सेट्ठिपुत्तस्स मोक्खचिकाय कीळन्तरस अन्तगण्ठाबाधो महाव. 363. अन्तगण्ठि पु. तत्पु. स. [आन्त्रग्रन्थि] आंत में उभरी हुई गांठ - अन्तगण्ठिं विनिवेठेत्वा अन्तानि पटिपवेसेत्वा उदरच्छविं सिब्बित्वा आलेपं अदासि, महाव. 364. 325 अन्तगत त्रि., [अन्तगत], अन्त तक गया हुआ, पार किया हुआ, पूरी तरह से कार्य को किया हुआ सो पारं गतो पारप्यत्तो अन्तगतो अन्तप्पत्तो कोटिगतो - अभयप्पत्तो . निब्बानप्पत्तो, महानि० 15; अन्तगतोति मग्गेन सङ्घारलोकन्तं गतो. महानि, अट्ठ. 65. दुक्खन्तगुनाति वट्टदुक्खस्स अन्तगर्तन सु. नि. अ. 2.98: भवन्तीति इमं गाथं महासत्तो अन्तोगतमेव भासति जा. अड. 5.198 त नपुं. अन्तगत से व्यु., भाव. [अन्तगतत्व], किसी काम या स्थान के अन्त तक जाना यो वट्टदुक्खस्स तीहि परिञ्ञाहि अन्तगतत्ता अन्तगू A. 3.2.119. अन्तगमक त्रि. [अन्तगमक] अन्त या परिसमाप्ति कर देने ओसानेत्वेव व्यारुद्धे, दिस्वा मे अरती अहूति वाला योबञ्ञादीनं ओसाने एवं अन्तगमके एव विनासके अरति मे अहोसि, सु. नि. अड. 2.258. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - For Private and Personal Use Only अन्तजन अन्तगुण नपुं तत्पु. स. [आन्त्रगुण] आंत की नली, आहार नली अन्त अन्तगुणं उदरियं करीस मत्थलुङ्ग खु. पा. (पृ.) 3; ततो परं अन्तोसरीरे अन्तन्तरे अन्तगुणं वण्णतो सेतं दकसीतलिकमूलवण्णन्ति ववत्थपेति, खु. पा. अ. 43; अयमेतस्स सभागपरिच्छेदो, विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो एवाति एवं अन्तगुणं वण्णादितो ववत्यपेति खु. पा. अड. 44 - भाग पु० तत्पु० स० [आन्त्रगुणभाग ], आंत की नली का एक भाग परिच्छेदतो अन्तगुणं अन्तगुणभागेन परिच्छिन्नन्ति ववत्थपेति, खु. पा. अट्ठ. 44. अन्तगू' त्रि अन्त कर देने वाला, उच्छेद या नाश कर देने वाला यदन्तगू वेदगू यज्ञकाले यस्साहुतिं लभे तस्सिति भूमि, सु. नि. 462 तत्थ यदन्तगृति यो अन्तगू, ओकारस्स अकारो सु. नि. अड्ड. 118 अन्तगुसि पारगू दुक्खस्स, अरहासि सम्मासम्बुद्धो खीणासवं तं मत्र सु. नि. 544; - --- अन्तगुसि पारगू दुक्खस्सा ति सु. नि. अट्ठ. 2.143. अन्तगू' पु०, व्य. सं., मृत्यु की ओर ले जाने वाले मार के लिये प्रयुक्त उपाधि कण्होति यो सो मारो कण्हो अधिपति अन्तगू नमुचि पमत्तबन्धु महानि, 369; मरणं पापनतो अन्तगू महानि, अड. 374. - अन्तग्गत त्रि.. [अन्तर्गत ] किसी वर्ग, समूह या श्रेणी के भीतर आने वाला, अन्तर्निविष्ट अन्तग्गते तु परियापन्नं अन्तोगधो गधा, अभि. प. 742. अन्तग्गाहिका स्त्री०, दिट्ठि के विशे० के रूप में प्रयुक्त [ अन्तग्राहिका ] शाश्वतवाद एवं उच्छेदवाद जैसे अन्तों को ग्रहण करने वाली दृष्टि, मिथ्यादृष्टि - मिच्छादिट्टिको होति अन्तग्गाहिकाय दिद्रिया समन्नागतो. दी. नि. 3.32; अन्तग्गाहिकाति सायेव दिट्टि उच्छेदन्तस्स गहितत्ता अन्तग्गाहिका ति दुच्चति दी. नि. अड. 321 बसवत्युका अन्तग्गाहिका दिडि. महानि. 81; अन्तग्गाहिकादिद्वीति सस्तो लोको इदमेव सच्च, गहेत्वा पवत्ता दिट्टि, महानि. अड. 192. अन्तच्छिन्न त्रि०, ब० स० [ अन्तछिन्न ], ऐसा वस्त्र या चिथड़ा, जिसके किनारे फटे हुए पंसुकूलन्ति सोसानिक, पायणिक... अन्तछिन्नं दसछिन्नं... देवदत्तियन्ति तेवीसति पंसुकूलानि वेदितब्बानि, अ. नि. अट्ठ. 2.270. अन्तजन पु०, कर्म. स. [ अन्तः जन], घर के भीतर के लोग, अपने लोग, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्राप्त;
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy