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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अत्थूपपरिक्खा एवं अत्युपेतं व्यञ्जनुपेतन्ति दी. नि. 3.96: अत्युपेतन्ति अत्थेन उपेतं अत्थरस विज्ञातारं दी. नि. अह. 3.86. अत्थूपपरिक्खा स्त्री अत्थ उप परिक्खा, तत्पु. स. [ अर्थोपपरीक्षा], अर्थ, अनर्थ, हित, अहित, कारण एवं अकारण का परीक्षण, अर्थ की जांच पड़ताल, अर्थ का परीक्षण, किसी वस्तु के महत्व पर अनुचिन्तन अत्थूपपरिक्खा बहुकारा, म. नि. 2.392. ... कालेन धम्मस्सवने कालेन अत्थुपपरिक्खाय, अ. नि. 2 (2) 91: अत्युपपरिक्खायाति अत्थानत्वं कारणाकारणं उपपरिक्खने, अ. नि. अड्ड. 3.128. अत्थूपपरिक्खी त्रि. तत्पु, स. [ अर्थोपपरीक्षिन् ] हितअहित, अच्छे-बुरे की परीक्षा करने वाला अर्थ का परीक्षण करने वाला धातानं धम्मानं अत्थूपपरिक्खी होति... अ.. नि. 1 ( 2 ) 112: अत्धूपपरिक्खीति अत्थं उपपरिक्खको अ. नि. अड. 2.320. अत्थूपसंहित त्रि, तत्पु० स० [ अर्थोपसंहित], इस लोक एवं परलोक के कल्याण के साथ जुड़ा हुआ / हुई, मङ्गलमय, हितसाधक- तथागतो ... पुब्बे मनुस्सभूतो समानो अत्थूपसंहितं ... वाचं भासिता अहोसि, दी. नि. 3. 115; धम्मो नाम बुद्धभासितो ... अत्थूपसंहितो. पाचि. 26 अत्यूपसंहितं धम्मूपसंहितं वाचं मुञ्चेय्य महानि. 382. अत्थेत / अर्थात त्रि., थेत का निषे, अविश्वसनीय, अस्थिर, धूर्त अर्थात सब्बघातिनं जा. अनु. 4.51 अचेतन्ति अथिरं अप्पटिद्वितवचनं, जा. अट्ठ. 4.52. - ... www.kobatirth.org **** अत्थेति अथ का वर्त, प्र. पु. ए. व. [ अर्थयति] अनुरोध करता है, प्रार्थना करता है, मांगता है, प्रायः 'प' उपसर्ग के साथ प्रयुक्त, पत्थेति, पत्थयति के अन्त. द्रष्ट.. अत्थेन त्रि., थेन का निषे, [अस्त्येन], वह जो चोर नहीं है; द्रष्ट. अथेन. - अत्यहि स्त्री [अत्यष्टि], छन्दों के उस एक वर्ग-विशेष का नाम जिसके अन्त शिखरिणी, हरिणी तथा मन्दाक्रान्ता नामक छन्द परिगणित हैं, वुत्तो० 97-99, पाठा. अच्चट्ठि अत्र' अ०, स्थान- बोधक अथवा विषयबोधक निपा० [अत्र ], यहां इस स्थान में, इस सन्दर्भ में, इस विषय में इहेघात्र तु एत्थात्थ अभि. प. 1161; इदमासनं अत्र भयं निसीदतु, जा. अनु. 5,163 अत्र पत्तं निक्खिपाहि अत्र धीवरं निक्खिपाहि चूळव. 353, समाना, इह, इध, अत्थ, एत्थ. अन् नपुं. अद का उणादिप्रत्यय से व्यु रूप [ अत्त]. भोजन, वह जो खाया गया हो छदादीहि तत्रण, क. व्या. 658; तेस मते छत्रं चित्रं. अत्रं इच्चेवमादि, सद्द 3.870. ... 147 अत्रिच्छ अत्रज पु. [आत्मज] पुत्र, बेटा परोसहस्सं न भवन्ति अत्रजा दी. नि. 3.121: पुत्तो च नागेस अत्रजो खेत्तजो अन्तेवासिको, दिन्नकोति चतुब्बिधो, तत्थ अत्तानं पटिच्च जातो अत्रजो नाम, जा. अट्ठ. 1.140; गतो मे अत्रजो पुत्तो, जा. अ. 4.85 पुत्ताति चत्तारो पुत्ता अत्तजो पुत्तो, खेत्तजोपुत्तो, दिन्नको पुत्तो अन्तेवासिको पुत्तो, महानि 181; टि. यह सं. आत्मज के नियमित पालि-रूपान्तरण अत्तज का सं. क्षेत्रज के पालि रूपा. खेत्रज के मि. सा. पर निर्मित अनि० शब्द है । 'त्त' के स्थान पर 'त्र' के प्रयोग के लिए द्रष्ट, क. व्या. 5.20; सद्द 3.622; त्त के स्थान त्र के अशुद्ध प्रयोग के उदाहरण के रूप में द्रष्ट, अत्रजो, खेत्रजो वत्रभू तथा गोत्रभू, स. उ. प. में काकण्डकद्विज.. जिन, ब्राह्मण, साकिय. आदि के अन्त. द्रष्ट.. अत्रजा स्त्री० [आत्मजा] पुत्री, बेटी धीता मज्झत्स अत्रजा, थेरीगा 151; वेदेहस्सत्रजा पिया, जा. अड. 7.115. अत्रभवं [अत्रभवत् ] परमादरणीय व्यक्ति का सङ्केतक सर्व. - इदमासनं अत्र भयं निसीदतु जा. अड. 5.163. अत्रहे अ., अत्र + अह, स. वि., ए. व. का अव्ययीकृत रूप, क्रि. वि., आज के दिन में, आज अज्ज अत्राहे, अभि. प. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1155. अत्रिच्च व्यु अनिश्चित, संभवतः अथर का पू. का. कृ. [आस्तृत्य, बौ. सं. अत्रित्य आङ् + √स्तृ + ल्यप्], फैलाकर, बिछाकर व्यवस्थित कर तैयार कर अत्रिच्च कोच्छं, जा. अट्ठ. 5.402; अत्रिच्च कोच्छन्ति एवरूपं कोच्छासनं पण्णसालद्वारे अत्थरित्वा, जा. अट्ठ. 5.403; पाठा. अत्रिच्छ. अत्रिच्छ त्रि. व्यु. अनिश्चित, [ अत्यृच्छ या अतृप्स]. अत्यधिक इच्छा रखने वाला, अत्यधिक लोभी अयं पन समुद्दे खित्तो अनिच्छो हुत्वा जा. अट्ठ. 3.179; अञ्ञतरोपि अत्रिच्छो अमच्चो विभ. अट्ठ. 446, पाठा. अतिच्छ (अति इच्छा वाला), अनिच्छ, (अति ईप्सा वाला), तथा अनिच्छा, (अति + ईप्सा, अति + इच्छा); - अत्रिच्छन्तिपि पाठो, अत्र अत्र इच्छमानोति अत्थो, अनिच्छा तिपि पाठो अत्रिच्छायाति अत्थो, जा. अट्ठ. 4.5; - टि. पालि के अत्रिच्छ, अत्रिच्छा एवं अत्रिच्छता शब्दों की व्यु लगभग अनिश्चित प्रकृति की है। संभवतः इनमें सं. अति + इच्छति, अति + ऋच्छति अथवा अति + ईप्सति में से किसी एक का अथवा सभी का पालि ध्वन्यन्तरण संभव है; - ता स्त्री०, अत्रिच्छ अथवा अतिच्छ की भाव० [अतीच्छता, अतृप्सता, अत्यर्हता?] अत्यधिक इच्छापरायणता, अत्यधिक For Private and Personal Use Only -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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