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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयीं अट्ठकथाओं के प्रकाशन की महत्वाकांक्षी योजना को नव नालन्दा महाविहार ने अपने हाथ में लिया। इसी क्रम में कुछ अट्ठकथाओं के अतिरिक्त सासनवंस और महावंसटीका का भी देवनागरी लिपि में प्रकाशन पूर्ण किया गया। परन्तु उस समय एक मानक पालि-हिन्दी शब्दकोश के प्रणयन की योजना पूर्ण नहीं हो सकी। नव नालन्दा महाविहार के संस्थापक निदेशक स्व. भदन्त जगदीश कश्यप ने बुद्धवचनों को सर्वग्राह्य बनाने हेतु तिपिटक के देवनागरी संस्करण तैयार करने तथा अनुवाद-कार्य में एकरूपता एवं प्रामाणिकता लाने हेतु एक पालि-हिन्दी शब्दकोश की संरचना को महाविहार की भावी प्रकाशन-योजनाओं में सम्मिलित किया था। उनका यह स्वप्न प्रस्तुत शब्दकोश के प्रणयन के रूप में यथार्थता का स्वरूप ग्रहण कर रहा है तथा भगवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 2550वें वर्ष में तथागत एवं सद्धर्म के प्रति महाविहार के श्रद्धाकुसुम के रूप में अर्पित किया जा रहा है। ___ नव नालन्दा महाविहार को एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बौद्ध-केन्द्र के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से भारत सरकार के संस्कृति विभाग ने वर्ष 1994 में एक स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में महाविहार का अधिग्रहण सम्पूर्ण परिसंपत्तियों एवं देयताओं के साथ किया । केन्द्र सरकार ने इसके उपरान्त महाविहार के बहुमुखी विकासहेतु अनेक कदम उठाए। एक मानक पालि-हिन्दी शब्दकोश की रचना की महत्वाकांक्षी योजना भी केन्द्रीय अधिग्रहण के उपरान्त लिये गये निर्णयों में से एक महत्वपूर्ण निर्णय है। प्रस्तुत शब्दकोश के प्रणयन के प्रमुख प्रेरणास्रोतों में स्व. भदन्त जगदीश कश्यप एवं पूज्य सत्यनारायण जी गोयन्का का प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व एवं उनकी धर्मचर्या है। विपश्यना-विशोधन-विन्यास (वि. वि. वि.) की इगतपुरी (महाराष्ट्र) में स्थापना कर तथा विपश्यना-ध्यानपद्धति के शिविरों द्वारा पटिपत्ति को सुदृढ़ कर पूज्य गोयन्का जी ने तथागत के धर्म को सभी के बीच प्रकाशित कर मानवता एवं मानवमूल्यों को जागृत किया है। वि. वि. वि. द्वारा देवनागरी लिपि में समस्त पालि-तिपिटक. समस्त अट्ठकथाएं, मूलटीकाएं एवं अनेक अनुटीकाएं जनसामान्य के लिये सुलभ करायी गयीं। प्रस्तुत शब्दकोश में वि. वि. वि. द्वारा प्रकाशित पालि-वाङ्मय के विभिन्न खण्डों को ही प्रकाशन की समग्रता के कारण प्रमुख आधार बनाया गया है। हिन्दी-भाषा में धर्म के वास्तविक तत्त्व को प्रकाशित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य भी पूज्य गोयन्का जी की प्रेरणा से ही पुष्पित एवं पल्लवित हुआ है। प्रस्तुत शब्दकोश की संरचना के संकल्प की पृष्ठभूमि में पूज्य गोयन्का जी की इस सदिच्छा की बहुत बड़ी भूमिका है कि हिन्दी-भाषाभाषी जन-जन तक धर्म का सन्देश पहुंचाने में पालि-हिन्दी शब्दकोश की महती महत्ता होने से इस प्रकार के शब्दकोश की रचना अत्यन्त आवश्यक है। जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत पालि-हिन्दी शब्दकोश एक ओर छात्रों एवं शोधार्थियों की चिर-प्रतीक्षित आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु है तो दूसरी ओर पालि-भाषा में सुरक्षित सद्धर्मामृत के पिपासु सामान्य-जनों की पिपासा के उपशमन में भी सहायक है। शब्दकोश के प्रयोगकर्ताओं के इन समूहों की अपरिहार्य अपेक्षाओं को दृष्टि में रखते हुए हमने पालिभाषा में निबद्ध पिटक एवं अनुपिटक साहित्य में प्रयुक्त अधिकतर महत्त्वपूर्ण शब्दों का चयन इस शब्दकोश में अर्थप्रकाशन हेतु किया है। पालि-साहित्य में प्रयुक्त समग्र शब्दराशि को शब्दकोश के अन्तर्गत निविष्ट कर सकना अशक्य है फिर भी प्रयास यही किया गया है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण शब्द छूटने न पाये। इस शब्दकोश में गृहीत शब्द-व्याख्यान-योजना के विषय में यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस शब्दकोश में शब्दों के विभिन्न विशिष्ट अर्थों पर प्रकाश डालने वाले उद्धरण या सन्दर्भ मुख्य रूप से तिपिटक, अट्ठकथाओं एवं मूलटीकाओं से लिये गये हैं तथा शब्दों के अर्थों का निर्धारण शब्दों की व्युत्पत्ति पर ही आधारित For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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