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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स प्रस्तावना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवान् बुद्ध ने उरुवेला के बोधि-मण्डप में अनुत्तर-धर्म का ज्ञान दर्शन प्राप्त कर जम्बुद्वीप के नगरों, निगमों एवं जनपदों में बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय विनेय-जनों को धर्मामृत का पान कराया। उनके मौखिक लोकमाङ्गलिक धर्मोपदेश देवों एवं मानवमात्र के लिये कल्याणकारी थे। उनके जीवनकाल में ही उनके शिष्यों ने उनके वचनों का मौखिक संग्रह एवं प्रचार-प्रसार विभिन्न जनपदीय भाषाओं में किया। दुर्भाग्यवश इन संग्रहों में से अधिकतर संग्रह विलुप्त हो गये अथवा आंशिक रूप में ही वर्तमान काल में उपलब्ध हैं परन्तु बुद्ध वचनों का एकमात्र संग्रह पालिभाषा में स्थविरवादी परम्परा की सुदृढ़ निष्ठा के कारण इस शताब्दी के पाठकों के पठनार्थ उपलब्ध है । भारत में पालि-भाषा के अध्ययन-अध्यापन की विलुप्त परम्परा उन्नीसवीं सदी में अनेक लोगों के सत्प्रयासों पुनरुज्जीवित हुई। विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं अनेक विश्वविद्यालयों में पालि भाषा तथा इसके समृद्ध साहित्य के पठन-पाठन हेतु स्वतन्त्र विभागों की स्थापना के साथ-साथ उत्तम एवं उदात्त मानव मूल्यों के सन्देशवाहक पालिसाहित्य के अध्ययन के प्रति सामान्य पाठकों का उत्साह भी उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। सद्धर्म की वैज्ञानिक एवं तर्कसङ्गत प्रकृति के कारण आधुनिक अध्येता की अभिरुचि पालि भाषा एवं साहित्य के प्रति दृढ़तर हो रही है। परन्तु प्राचीन भाषा होने के कारण वर्तमान काल के अध्येताओं एवं जिज्ञासु जनों के लिये पालि भाषा का ज्ञान सहज एवं सरल नहीं है। उन्हें आधुनिक भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में किये गये पालि-ग्रन्थों एवं संग्रहों के अनुवादों का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है साथ ही इन भाषाओं में पालि भाषा के शब्दकोशों की उपादेयता एवं स्वीकार्यता भी स्वतः स्पष्ट हो जाती है। अभी तक कोई प्रामाणिक पालि-हिन्दी शब्दकोश उपलब्ध न होने से भारत के बहुत बड़े भू-भाग के हिन्दीभाषा-भाषी अध्येताओं एवं जिज्ञासु जनों को पालिभाषा को ठीक से समझने में अत्यधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्व. भिक्षु आनन्द कौशल्यायन द्वारा रचित पालि-हिन्दी शब्दकोश जैसे एक दो कोश ही इस समय उपलब्ध हैं, उनमें बहुत थोड़े शब्दों को ही स्थान दिया जा सका है तथा शब्दों के सन्दर्भसङ्गत अर्थों को न देकर सामान्य अर्थमात्र दिये गये हैं। इनसे विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर कक्षाओं के छात्रों, शोधार्थियों एवं धर्म-जिज्ञासु सामान्य पाठकों की आवश्यकताएं पूर्ण नहीं हो पाती थीं। इन सभी दृष्टियों से एक मानक पालि-हिन्दी शब्दकोश के प्रणयन की अनिवार्य आवश्यकता थी । उपयुक्त पालि-हिन्दी शब्दकोश का अभाव बहुत दिनों से अनुभव किया जा रहा था। प्रस्तुत शब्दकोश इस अभाव की पूर्ति हेतु किया जा रहा एक प्रयास है। नव नालन्दा महाविहार की स्थापना के प्रमुख उद्देश्यों में से एक उद्देश्य देवनागरी लिपि में सम्पूर्ण बुद्धवचनों ( तिपिटक) का प्रकाशन तथा मानक पालि-हिन्दी शब्दकोश का प्रणयन भी था । इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु नव नालन्दा महाविहार ने भगवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 2500 वें वर्ष के पुनीत अवसर पर 1955-56 ई. में लिये गये निर्णय के आलोक में सम्पूर्ण पालितिपिटक ग्रन्थों का प्रथम बार देवनागरी लिपि में प्रकाशन कर भारतीय जनमानस के लिये बुद्धवचनामृत के पान का सुअवसर प्रदान किया। कालान्तर में पालि- तिपिटक के ग्रन्थों पर लिखी For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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