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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अज्ञत्थ सुद्धिमाह सु. नि. 796: न अञ्ञतो भिक्खु सन्तिरोच्य सु. नि. 925: ख. दूसरी दिशा की ओर दूसरे स्थान की तरफ अञ्ञतो ओलोकेन्तो अपरं निष्फलं अम्बरुक्खं दिखा जा. अ. 3.333; ग. दूसरे प्रकार से, अन्यथा रूप से, अन्य दृष्टिकोण से सब्बं धम्मं परिज्ञाय सब्बनिमित्तानि अञ्ञतो परसति, स. नि. 2 ( 2 ).56. अज्ञत्थ' सप्त वि. प्रति निपा., [अन्यत्र] 1. किसी दूसरे स्थान पर, अन्य स्थान में, किसी भी दूसरी जगह में किं तया अज्ञतथापि एवरूपो पासादो कतपुब्बा ध. प. अ. 2.74, अञ्ञत्थ पन उपसग्गवसेन संभावना परिभावना विभावनाति एवं अज्ञथापि अत्थो होति. ध. स. अड. 207. अञ्ञत्थ वसि सो देसो तेन तन्नामको अहु म. व. 22.14; 2. किसी अन्य स्थान की ओर - त्वं अत्तनो पुत्तके गहेत्वा अञ्ञत्थ याहि जा. अड. 2.128 इतो अञ्ञत्थ गच्छामा ति ध. प. अट्ठ. 1.122. - अथ त्रि.. [अन्यार्थ अन्यार्थप्रधान] 1. स. प. से भिन्न पदों के अर्थ की प्रधानता वाला ब. स. त्थेसु सप्त. वि. ब. व. - अञ्ञपदत्थेसु बहुब्बीहि, क. व्या. 330; 2. कोई दूसरा पदार्थ, कोई अन्य अभीप्सित वस्तु या प्रयोजन त्थाय पु.. च. वि., ए. व. - या सति पच्चुपट्ठिता होति, सा न अञ्ञत्थाय म. नि. अ. (मृ. प.) 1 (1) 261. अञ्ञत्र निपा. [ अन्यत्र] 1. क्रि. वि. और जगह दूसरे स्थान पर - किं पन त्वं, आवुसो उपनन्द, अञ्ञत्र वस्संवुट्ठो, अञ्ञत्र चीवरभागं सादियी ति, महाव. 392, ये च अञ्ञत्र पटिसन्धि देन्ति, सो अद्धा अस्थि, मि. प. 49. यदा बोधिसत्तो दुक्करकारिकं अकासि नेतादिसो अञ्ञत्र आरम्भो अहोसि. मि. प. 230 2. क्रि. वि., सिवाय, के अतिरिक्त, के बिना अञ्ञत्रापि धम्मा कम्मं करोन्ति, अञ्ञत्रापि विनया कम्मं करोन्ति, अञ्ञत्रापि सत्थुसासना कम्मं करोन्ति महाव. 412; यस्मा च खो, कस्सप, अञ्ञत्रेव इमाय मत्ताय अञ्ञत्र इमिना तपोपक्कमेन सामञ्ञ वा होति ब्रह्मञ्ञ वा दुकरं सुदुकर दी. नि. 1.152 आवुसो, आनन्द, अज्ञत्रेव भगवता, अञ्ञत्र, भिक्खुसङ्घा उपोसथं करिस्सामि, ध.प. अ. 1.82 3. अन्यथा, दूसरी अवस्था में या स्थिति में - 78 एवरूपो. भिक्खवे, पुग्गलो पयिरुपासितब्बो अञ्ञत्र अनुदया अञ्ञत्र अनुकम्पा, अ. नि. 1 ( 1 ).148; किमञ्ञत्र भिक्खने, नन्दो इन्द्रियेसु गुत्तद्वारो, भोजने मत्तज्जु जागरिय अनुयुत्तो, अ. नि. 3(1). 15. तुल. अञ्ञत्थ गति स्त्री.. [ अन्यत्रगति] दूसरे जन्म में संक्रमण, दूसरे अस्तित्व में अज्ञथा गमन, विवश होकर दूसरे जन्म में संक्रमण - पकतियापि च परलोकं गता नाम अञ्जन्त्रगतिवसा पुन वेनेव सरीरेन नागच्छन्ति जा. अ. 2.203. पाठा, अञ्ञत्थ - योग / त्रायोग त्रि.. दूसरे धार्मिक सम्प्रदाय का आचरण करने वाला, अन्य धार्मिक सम्प्रदाय के मन्तव्यों का आसेवन करने वाला - गेन पु., प्र. वि., ए. व. सो तथा दुज्जानो अञ्ञदिद्विकेन अञ्ञखन्तिकेन अञ्ञरुचिकेन अञ्ञत्रयोगेन, म. नि. 2.164, सज्जा पुरिसस्स अत्ताति वा, अञ्ञाव सज्ञा अञ्ञो अत्ताति वा ति ? दुज्जानं खो एतं, पोट्टपाद, तया अञ्ञदिद्विकेन अञ्ञत्रयोगेन दी. नि. 1.166 पाठा. अज्ञत्थ-योग, अज्ञत्त-पयोग, ... For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्ञथत्त नपुं., अञ्ञथा का भाव [ अन्यथात्व]. शा. अ. भिन्नता, विशिष्टता, परिवर्तन, रूपान्तरण, अन्यथाभाव, विपरिणाम तं द्वि. वि. ए. व. न खो पन मयं पस्साम - आयस्मतो उपसेनस्स कायस्स वा अञ्ञथत्तं इन्द्रियानं वा विपरिणाम स. नि. 2(2).44 अञ्ञयत्तन्ति अज्ञधाभावं स. नि. अ. 3.15: कुमारिया विपरिणामञ्ञथाभावा जीवितस्सपि सिया अज्ञयत्तं म. नि. 2319 ला. अ. चित्त का सम्मोह विषाद, ग्लानि, दुःख, अनुताप, पश्चाताप आदि में या दूसरे रूप में परिवर्तन - तत्थ अप्पसन्ना चेव नप्यसीदन्ति पसन्नानञ्च एकच्चानं अज्ञधत्तं होति. अ. नि. 2 (1) 61 त्ताय नपुं. च. वि. ए. व. अथ वेत्, भिक्खवे, अप्पसन्नानञ्चेव अप्पसादाय, पसन्नानञ्च एकच्चान अञ्ञथत्तायाति महाव. 51 स. उ. प. में चित्त पसाद, भाव, लक्खण., विपरिणाम के अन्त द्रष्ट.. अज्ञथा निपा., [अन्यथा] 1. नहीं तो वरना, भिन्न रूप से, भिन्न ढंग से - येन येन हि मञ्ञन्ति, ततो तं होति अञ्ञथा, सु. नि. 583; 762 तस्स तं रूपं विपरिणमति अञ्ञथा होति. स. नि. 2 (1).16; अहोसि पुब्बे ततो मे अञ्ञथा, इच्चेव मे विमति एत्थ जाता, जा. अड. 3.460 2 अननुकूल, अप्रिय, अरुचिकर या विपरीत रूप में यञ्च मे अय्यपुत्तस्स, मनो हेस्सति अञ्ञथा, जा. अड. 5.86; चित्तस्स अञ्ञथा नथि एसा मे वीरियपारमी, जा. अड. 1.57 3. यथार्थता से विपरीत भाव में अयथार्थ रूप में सब्बं तं तथेव होति नो अञ्ञथा, तस्मा तथागतोति सुब्बति, इतिवु. 85 यो जानं पुच्छितो पहे अञ्ञथा नं वियाकरे जा. अनु. 3.402 थावरियक त्रि. दूसरे धार्मिक मतवाद के अनुसार आचरण करने वाला, बौद्धेतर धार्मिक सम्प्रदायों के आचार्यों के समीप रहने वाला केन पु०, तृ. वि. ए. व. सो तया - - -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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