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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir indian तिनके गुण वर्णन करे तौभी राम लक्षमण के गुण कह न सके अनेक वदनोंकर दीर्घ काल तक तिन 'के गण वर्णन करे तौभी न कर सके, तथापि में तुम्हारे वचन से किंचितमात्र वर्णन करूं हूं तिनके गुण २३॥ पुण्य के बढ़ावनहारे हैं अयोध्यापुरी में राजा दशरथ होते भये दुराचाररूप इन्धन के भस्म करवे को अग्नि समान, और इक्ष्वाकु वंश रूप अाकाश में चन्द्रमा महा तेजोमय सूर्य समान सकल पृथिव। विषे प्रकाश करते अयोध्या विष तिष्ठे वे पुरुषरूप पर्वत तिनसे कार्तिरूप नदी निक सी, सोसकलजगत का आनन्द उपजावती समुद्र पर्यन्त विस्तारको धरती भई उस दशरथ भूपतिके राज्य भारके धुरन्धरही चार पुत्र महागुणवान भये एक राम दूजा लक्षमण तीजा भरत चौथा शत्रुघ्न तिनमे गम अति मनोहर सर्वशास्त्रके ज्ञाता पृथ्वी विषेप्रसिद्ध सो छोटे भाई लक्षमणसहित और जनक की पुत्रीजो सीता उससहित पिताकी आज्ञा पालवे निमित्त अयोध्याको तज पृथ्वी विषे बिहार करते दण्डक बन में प्रवेश करते भये । सो स्थानक महाविषम जहां विद्याधरोंकी गम्यता नहीं खरदूषणसे संग्रामभया रावणने सिंहनाद किया उमे सुन कर लक्ष्मणकी सहाय करने को राम गया पीछेसे सीताको रावण हरलेगया तब राम नमुग्रीव हनमान विराधित आदि अनेक विद्याधर भेले भये राम के गुणों के अनुराग से वशीभतहै हृदय जिनका या विद्यावों को लेकर राम लंकाको गये रावण को जीत सीता को लेय अयोध्या प्राये स्वर्ग पुरी समान अयोध्या विद्याधरों ने बनाई वहां गम लक्षमण पुरुषोत्तम नागेंद्र समान सुखसे राज्यकरें राम को तुम अब तक कैसे न जाना जिसके लक्षमणमा भाई उसके हाथ मुदर्शन चक्र सो आयुध जिसके । एकएक नकी हजार हजार देव सेवाकरें ऐसे सातरत्न लक्षमणके और चाररत्न रामकै जिसने प्रजा के For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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