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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्य पुराणा, हारे आए नगर की अतिशोभा भइ लाकां क अति आनंद भया निर्मल ध्वजा चढ़ाई समस्त नगर । ६२२१ सुगन्धकर छांटा औरवस्त्र प्राभूषणों कर शोभित कीया दरवाजेपर कलश थापेसो कलश पल्लवों से ढक और और ठौर बंदनमाला शोभायमान दीखतीभई और हाट बाजार टवरादि वस्त्रकर शोभित भए जैसी श्रीराम लक्ष्मणके आए अयोध्या की शोभा भई थी तैसीही पुण्डरीकपुर की शोभा कुमारोंके अाएसे भई जिस दिन महाविभूतिसे प्रवेशकिया उसदिननगरके लोगोंको जो हर्षभया सो कहिवेमें न आवे दोनोंपुत्र कृत्य अकृत्य तिनको देखकर सोतापानंद के सागरमें मग्नभई दोनोंवीर महाधीर आयकर हाथजोड़ माताको नमस्कार करते भये सेनाकी रजकर धूसराहै अग जिसका, सीताने पुत्रको उरसे लगाय माथे हाथ घरामाता को अति आनन्द उपजाय दोनों कुमार चांद सूर्यकी न्याई लोकमें प्रकाश करते भये ।। इति एकसौ एकपर्व ___ अथानन्तर ये उत्तममानव परम ऐश्वर्य के धारक प्रवल राजावों पर अाज्ञा करते सुखसे तिष्ठे एक दिन नारद ने कृतान्तवक को पूछा कि त सीताको कहां मेल आया, तब उसने कही कि सिंहनाद अटवी में मेली सो यह सुनकर अति ब्याकुल होय दडता फिरे था सो दोनों कुमार वनक्रीड़ा करते देखे तब नारद इनके समीप अाया कुमार उठकर सन्मान करतेभये नारद इनको विनय वोन देख बहुत हर्षित । भया और असीस दई जैसे राम लक्षमण नर नाथ के लक्ष्मी है तैसी तुम्हारे होवो तब ये पूछते भये कि हे देव राम लक्षमण कौन हैं, और कौन कुल में उपजे हैं, और क्या उनमें गुण हैं और कैसा तिनको आचरण है तब नारद क्षण एक मौन पकड़ कहते भये हे दोनों कुमरो कोई मनुष्य भुजावोंकर पर्वतको उखाड़े अथवा समुद्रको तिरे तौभी राम लक्षमण के गुण कह न सके अनेक वदनों कर दीर्घ काल तक For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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