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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org 1८८१॥ पन || प्रकट पावें तब इनको अकार्य करने में कहां भय, जैसे बानर सहजही चपलहै और महाचपल जोयंत्रपिंजरा पुरावा उसपर चढ़ा तर क्या कहना निर्वलों की यौवनवंत स्त्री पापी बलवंत छिद्र पाय बलात्कार हरे हैं और कोईयक शीलवंती विरहकर पराये घर अत्यंत दुखी होय हैं तिनको कोईयक सहाय पाय अपने घर लेभावे हैं सो धर्म की मर्यादा जाय है, यह नजाय सो यत्न करो प्रजा के हितकी वांछा करो जिस विधि प्रजाका दुख टरेसोकरो इस मनुष्य लोकमें तुम बड़े. राजा हो तुम समान और कौन तुमही जो प्रजाकी रक्षा न करोगे तो कौन करेगा नदीयों के तट तथा वन उपवन कूप वापिका सरोवरों के तीर ग्राम ग्राममें घर घरमें सभामें एक यही अपवाद की कथा है और नहीं कि श्रीराम राजा दशरथके पुत्र सर्व शस्त्रमें प्रवीण स रावण सीता को हर लेगया ताहि घर में लेनाये सब पोरों को कहा दोष है जो बड़े पुरुषकरें सो सब जगत् को प्रमाण जिस रीति राजा नवर्ते उसहीरीति प्रजा प्रवर्ते “यथा राजा तथा प्रजो" यह वचन है इस भांति दुष्ट चित्त निरंकुशभए पृथिवी में अपवाद करे हैं तिनको निग्रह करो हे देव आप मर्यादाके प्रवर्तक पुरुषोत्तम हो एक यही अपवाद तुम्हारेराज्यमें न होतातो तुम्हाराजोराज्यइन्द्र मेभीअधिकहैयह वचनविजय के सुनकर क्षणएक रामचन्द्र विषादरूप मुद्गर के मारे चलायमानचित्त होयगए चित्तमें चितवते भए यह कौन कष्ट पड़ा मेरा यशरूप कमलोंका बन अपयशरूपअग्नि कर जलने लगा है जिससीताके निमित्त में विरह का कष्ट सहा सो मेरे कुलरूप चन्द्रमा को मलिन करे है अयोध्या में में सुखके निमित्त आया और सुग्रीव हनूमानादिक से मेरे सुभटसी मेरे गोत्ररूप कुमुदनीको यह सीता मलिन करे है जिसके निमित्त मेंने समुद्र तिर रणसंग्राम कर रिपुको जीता सो जानकी मेरे कुलरूप दर्पण को कलुषकरे है और लोक For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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