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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पद्म पुरा यह वार्ता अचल कुमारकी माताने जानी तब पुत्रको भगाय दिया सो तिलक बनमें उसके पाव में कांटा ६३॥ लगा सो कंपका पुत्र आप काष्टका भरा लेकर श्रावे यासो अचलकुमारको कांटेके दुखसे करुणावन्त देखा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब अपने काष्ठका भार मेल छूरीसे कुमारका कांटा काढ़ कुमारको दिखायासो कुमार अति प्रसन्न भया आपको कहा तू मेरा अचलकुमार नाम याद रखियो और मुझे भूपति सुने वहां मेरे निकट आइयो इस भांति कह अपको बिदा किया सो अप गया और राजपुत्र महादुखी कौशांबी नगरीके विषे आया महापराक्रमी सो बाणविद्याका गुरुजो विशिषाचार्य उसेजीतकर प्रतिष्ठा पाई सोराजाने अचलकुमारको नगर में ल्यायकर अपनी इन्द्रदत्ता नाम पुत्री पराई अनुक्रमकर पुण्य के प्रभावसे राजपाया सो गदेश आदि अनेक देशों को जीतकर महाप्रतापी मथुरा श्राया नगरके बाहिर डेरा दिये बडी सेना साथ सब सामन्तों ने सुनी कि यह राजा चन्द्रभद्रकापुत्र अचलकुमार है सो सब प्राय मिले राजा चन्द्रभद्र अकेला रहगया तबराणी धराके भाइ सूर्यदेव अग्निदेव यमुनादेव इनको संधि करने भेजे सोये जायकर कुमार को देख बिलस्ने होय भागे और घराके उपुत्र भी भाग गए अचलकुमारकी माता श्राय पुत्रको लेगई पिता से मिलाय पिताने इसको राज्य दिया एकदिन राजा अचलकुमार नटों का नृत देखेथा उससमय पाया जिसने इसका वननें कांटा काढाथा सो उसे दरवान धक्का देयकाढे थे सो राजाने मनेकिए और अपको बुलाया बहुत कृपा करी और जो उसकी जन्मभूमि श्रावस्ती नगरीथी सो उसे दई और ये दोनों परममित्र भेलेही रहें एकदिवस महासंपदा के भरे उद्यान में कीड़ा को गयेथे सो यशसमुद्र चाचार्य को देख कर दोनों मित्र मुनिभये सम्यकदृष्टि परम संयमको प्राराव समाधिमरण कर स्वर्ग विषे उत्कृष्ट देवभये वहां For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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