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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir पा को न तजता भया, मंत्रियोंके बचनसे शोकका दबाकर संसारको कदली (केला)के गर्भवत् असार जान इंद्रियोंके मुख छोड़ भगीरथ को राज देकर जिन दीचा प्रादरी, यह सम्पूर्ण छै खण्ड पृथ्वी जीप तृण समान जान तमी, भीमरष सहित श्री अजितनाथ के निकट मुनि होय केवल ज्ञान उपाय सिद्ध पद को प्राप्त भए। ___ अथानन्तर एक समय सगरके पुत्र मगीरथ श्रुतसागर मुनिको पूछते भए कि हे प्रभो जो हमारे भाई एकही साथ मस्याको प्राप्त भए उनमें में बचा सो किस कारणसे बचा तब मुनि बोले कि एक समय चतुर्विधि संघ बन्दना निमित्त संमेद शिखरको जाते थे चलते २ अन्तिक ग्राममें आय निकसे तिनको देखकर अन्तिक माम के लोक दुर्वचन बोलते भए, हंसते भये, तहां एक कुम्भार ने उनको मने करा और मुनियों की स्तुति करी तदनंतर उस ग्रामके एक मनुष्य ने चोरी करी राजाने सर्व ग्राम जला दिया उस दिन वह कुंभार किसी ग्राम को गया था वहही बचावह कुंभार मरकर बणिक भया और और जे ग्राम के मरे थे सो दिइंद्री कौड़ी भये, कुंभारके जीव महाजनने सर्व कौडीखरीद फिर वह महाजन मर कर राजा भया, और कौडी मरकर गिजाई भई, सो हाथी के पगके तले चूरी गई राजा मुनि होयकर देव भये, देवसे तू भागीरथ भया और ग्राम के लोक कैएक भव लेय सगर के पुत्र भये सो मुनोंके संघ की निन्दा के पाप से जन्म जन्म में कुमौत पाई और तू स्तुति करने से ऐसाभया, यह पूर्वभव सुनकर भगीरथ प्रतिबोषको पायकर मुनिराजका व्रतधर परम पदको प्राप्त भये। अथानन्तर गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं हे श्रेणिक यह सगरका चरित्र तो तुझे कहा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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