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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण ॥१६॥ कही हे राजन् मेरे विशिल्यानामा पुत्री सर्वविद्यामें प्रवीण महागणवती सो जव गर्भ में पाई तब मेरे । देश में अनेक व्याधि थी सो पुत्री के गर्भ में प्रावते ही सर्व रोग गए, पुत्री जिनशासन विपे प्रवीण है भगवान् की पूजा में तत्पर है सर्व कुटम्ब की पूजनीक हैं उसके स्नान का यह जल है उस के शरीर की सुगन्धता से जल महासुगन्ध है क्षणमात्र में सर्व रोग का विनाश करे है, ये वचन द्रोणामेघ के । सुनकर मैं आश्चर्य को प्राप्त भया उस के नगर में जाय उस की पुत्री की स्तुति की, और नगरी से । निकस सत्वहित नामा मुनि को प्रणाम कर पूछा हे प्रभोद्रोणमेघ की पुत्री विशल्या का चरित्रक हो तब चार। ज्ञान के धारक मुनि महावात्सल्य के धरणहारे कहतेभए हे भरत महाविदेहक्षेत्र में स्वर्गसमान पुंडरीक । देश वहां त्रिभुवनानन्द नामा नगर वहां चक्रधर नाम चक्रवर्ती राजाराज्य करे उसके पुत्री अनंगसरा गण । ही हैं आभूषण जिसके स्त्रियों में उस समान रूपअद्भुत और का नहींसो एकप्रतिष्ठित पुर कोधनीराजा पुनर्वसु विद्याधर चक्रवर्तीका सामन्तसो कन्याको देख काम बाणकर पीडितहोय विमान में बैठाय लेय गया सो चक्रवर्तीने क्रोधायमानहोय किंकर भेजेसो उससे युद्ध करते भए उसका विमान चूर डारा तब उस ने व्याकुलहोय कन्याअाकाशसे डारी सो शरदके चन्द्रमाकीज्योतिसमान पुनर्वसुकी परणलघुविद्या कर अटवीमें प्राय पडी सो अटवी दुष्ट जीवोंसे महा भयानक जिसका नाम श्वापद रौरव जहां विद्याधरोंका | भी प्रवेश नहीं वृक्षोंके समूहसे महा अंधकाररूप नानाप्रकारकी बेलोंसे बेढे नाना प्रकारके ऊंचे वृक्षों की सघनतासे जहां सूर्यको किरणका भी प्रवेश नहीं और चीताव्याघ्र सिंह अष्टापद गेंडारीछ इत्यादि । अनेक वनचर विवरें और नीची ऊंची विषमभूमि जहां बडे २ गत (गटे) सो यह चक्रवर्तीकी कन्याअनंग For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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