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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पद्म पुराव भुजा सुग्रीव इन्द्र सारिखा शोभायमान भिंडिपाल लिये बैठे सातवीं चौकी महा शस्त्रका निकन्दक तरवार सम्हाल आप भामंडल बैठा पूर्व के द्वार अष्टपादकी ध्वजा जाके ऐसा सोहताभया मानों महाबली "अष्टपादही है और पश्चिमके द्वार जाम्बुकुमार विराजताभया और उत्तरके द्वार मन्त्रियों के समूह सहित बालीका पुत्र महा बलवान चन्द्रभारीच बैठा इस भांति विद्याधर चौकी कै सो कैसे सोहतेभए जैसे आकाश में नक्षत्र मंडल संभालते और वानरवंशी महाभट वे सब दक्षिण दिशा की तरफ चौकी बैठे इस भांति चौकी का यत्नकर विद्याधर तिष्ठे लक्षमण के जीने में है संदेह जिनके प्रबल है शोक जिनको जीवों के कर्म रूप सूर्यके उदय से का प्रकाश होय है ताहि न मनुष्य न देव न नागन असुर कोई भी निवारने समर्थ नहीं यह जीव अपना उपार्जा कर्म आपही भोगवे है ॥ इति त्रेसठवां पर्व संपूर्णम् ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथानन्तर राव लक्ष्मणका निश्चयसे मरण जान और अपने भाई दोनों पुत्रोंको बुद्धिमें मरण रूपही जान अत्यन्त दुःखो भया रावण विलाप करे है हाय भाई कुम्भकरण परम उदार अत्यन्त हितु कहा एसी बन्धन व्यवस्था को प्राप्त भए हाय इन्द्रजीत मेघनाद महा पराक्रम के धारी हो मेरी भुजा समान दृढ़ कर्म के योग से बंधको प्राप्तभए ऐसी व्यवस्था अबतक न भई में शत्रु का भाई हना है सो न जानिये शत्रु व्याकुलभया क्या करे तुम सारिखे उत्तम पुरुष मेरे परप वल्लभ परम व्यवस्था को प्राप्त भए इस समान भोकों यति कष्ट कहां ऐसे रावण गोप्य भाई और पुत्रोंका शोक करताभया और जानकी लक्षमण के शक्ति लगी सुन प्रति रुदन करती भई हाय लक्षमण विनयमान गुणभूष तू मोमन्द भागिनी के निमित्त ऐसी अवस्थाको प्राप्तभया में तुझे ऐसी अवस्थामें भी देखा चाहूं हूं सो दैव योगसे देखने For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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