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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म 19081 । सो हाथी के चालतेजे कान बेई भए बीजना उस से मानों हवा से सुख रूपकर रहे हैं और कोईयक सुभट निराकुल बुद्धि हुया हाथी के दांतों पर दोनों भुजा पसार सोवे है मानों स्वामी कार्यरूप समुद्रसे उतरा और कैयक योधा युद्धसे रुधिर का नालाबहावतेभए जैसे पर्वतमें गेरुकी खानसे लाल नीझरने बहें और कैयक योधा पृथिवीमें साम्हने महसे पडे होठ डसते शस्त्र जिनके करमें टेढी भौंह विकराल वदन इसरीति से प्राण तजे हैं और कैएक भब्यजीव महा संग्रामसे अत्यन्त घायल होय कषायका त्याग कर सन्यास धर अविनाशी पदका ध्यान करते देहकोतज उत्तम लोकको पाये हैं कैएक धीरवीर हाथीयों के दांतोंको हाथसे पकड़कर ही देह रुधिरकी छटा शरीरसे पडे है शस्त्रहें हाथोंमें जिनके और कैएक काम आयगए तिनके समस्त गिरपड़े और सैंकडां धड नाचे हैं कैएक शस्त्र रहित भए और घावों से जरजरे भए तृषातुर होय जल पीवने को बैठ हैं जीक्तकी अाशा नहीं ऐसे भयंकर संग्रामके होते परस्पर अनेक योधावोंका क्षया भया इन्द्रजीत तीक्षण वाणोंसे लक्ष्मणको अच्छादने लगा और लक्षमण उसको सो इन्द्रजीत ने लक्षमण पर तामस वाण चलाया सोअन्धकार होयगया तब लक्ष्मणने सूर्यवाण चलाया उस से अन्धकार दूरभया फिर इन्द्रजीत ने प्राशीमें जातिके नाग वाण चलाए सो लक्षमण और लक्ष्मणका स्थ नागोंसे वेष्टित होनेलगा तब लक्ष्मण ने गरुडवाण के योगसे नागवाण का निराकरण किया जैसे योगी महातप से पूर्वोपार्जित पापोंके समूहको निराकरणकरें और लक्ष्मणने इन्द्रजीतको स्थरहित किया। कैसाहै इन्द्रजीत मन्त्रियोंके मध्य तिष्ठे है और हाथियों की घटावों से वेष्टित है सो इन्द्रजीत दूजे स्थपर। | अपनी सेनाको वचन से कृपाकर रक्षा करता सन्ता लक्षमणपर तप्त वाण चलावता भया उसे लक्ष्मण । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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