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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1900 प। वह वाहि बुलावे वरावरके सुभट कोईकहे हैं मेरा शस्त्र अावे है उसे तू झेल कोई कहे है तू हम से युद्ध पराण | योग्य नहीं बालक है बृद्ध है रोगी है निर्बल है तू जा फलाने सुभट युद्ध योग्य है सो श्रावो इसभांति के वचनालाप होय रहे हैं कोई कहे है याही छेदो इसे भेदो कोई कहे. है बाण चलावो कोई कहे है मारलेवोपकडलेवोबांधलेवो ग्रहणकरो छोड़ो चूर्णकरो घावलगे ताहि सहों घावदेहु आगेहोवो मूर्छित मत होवो सावधान होवो तू कहा डरे है मैं तुझे ने मार कायरोंको न मारनीभागोंको न मारना पडेको न मारना आयुधरहित पर चोट नै करनी तथारोगसे असा मूर्छित हीन बाल वृद्ध यति बतीस्त्री शरणागत तपस्वी पागल पश पक्षी इत्यादिको सुभटन मारें यह सामन्तोंकी बृतिहै कोई अपने वंशियोंको भागतेदेख धिकार शब्द कहे हैं और कहै हैं तु कायर है नष्टहै मतिकांपे कहां जाय है धीरा रहो अपने समूहमें खडा रहु । तोसू क्या होयहै तोस कोन डरे तू काहेका क्षत्री शूर और कायरोंके परखनेका यह समयहै मीठामीठा अन्न तो बहुत खाते यथेष्टभोजन करते अब युद्धमें पीछे क्यों होवो इसभान्ति धीरों की गर्जना और वादित्रों का वाजना तिनसे दशों दिशा शब्द रूप भई और तुरंगोंके खुरकी रजसे अंधकार होयगया चक्र शक्ति गदा लोहयष्टि कनक इत्यादि शस्त्रोंसे युद्धभया मानों ये शस्त्र कालकी डाढही हैं लोग घायलभए दोनों सेना ऐसी दीखें मानों लाल अशोकका बनहै अथवा केसूका बन है और अथवा पारि भद्र जातिके वृक्षोंका वनहै कोई योधा अपने वषतरको टूटा देख दूजा वषतर पहरताभया जैसे साधु व्रत में दूषण उपजा देख फिर पीछे दोष स्थापनाकरे और कोई दांतोंसे तरवार थाम्भ कमर गाढी कर फिर युद्धको प्रवृत्ता कोई यक सामन्त माते हाथियों के दांतोंके अप्रभागसे विदारा गयाहै वक्षस्थल जिसका For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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