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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म ॥६७५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उससमय प्रयाण करतेभए क्या क्या शकुन भए वे कहिये हैं निर्घम अग्नि की ज्वाला दक्षिण वर्त देखी और मनोहर शब्द करते मोर और वस्त्राभरणकर संयुक्त सौभाग्यवती नारी सुगन्ध पवन निग्रथ मुनि छ तुरंगों का गम्भीर हींसना घंटा का शब्द दहीका भरा कलश काग पांख फैलाए मधुर शब्द करता मेरी और शांख का शब्द और तुम्हारी जय होवे सिद्धि होवे नन्दो बधो ऐसे वचन इत्यादि शुभ शकुन भए राजा सुग्रीव श्रीराम के सँग चलते भए सुग्रीवके ठौर २ सुविधाघरों के समूह आए कैसा है सुग्रीव शुक्लपक्षके चन्द्रमा समान है प्रकाश जिसका नानाप्रकार के विमान नानाप्रकारकी ध्वजा नानाप्रकार के वाहन नाना प्रकोर के आयुध उन सहित बड़े बड़े विद्याधर आकाश में जाते शोभते भए राजा सुग्रीव हनूमानशल्य दुर्मर्षण नलनील काल सुषेणकुमुद इत्यादि अनेक राजा श्रीरामके लारभए तिनके ध्वजावों पर देदीप्यमान रत्नमई बानरोंके चिन्ह मानो आकाशके प्रसवेको प्रवरते हैं और विराधितकी ध्वजा पर नाहरका चिन्ह नीझरने समान देदीप्यमान और जाम्बुकी ध्वजापर वृक्ष और सिंहरव की ध्वजा में व्याघ्र और मेघकांतकी ध्वजा में हाथीका चिन्ह इत्यादि राजावोंकीध्वजा में नानाप्रकार के चिन्ह इनमें भूतनाद महा तेजस्वी कपाल समान सो फौज का अग्रेसरभया और लोकपाल समान हनुमान भूतनाद के पीछे सामन्तों के चक्र सहित परम तेजको धरे लंकापर चढ़े सो अति हर्षके भरे शोभते भये जैसे पूर्व रावण के बड़े सुकेशी के पुत्र माली लंका पर चढ़े थे और अमल किया था तैसे श्रीराम चढ़े श्रीराम के सन्मुख विराधित बैठा और पीछे जामवंत बैठा बांई भुजा सुषेण बैठा दाहिनी भुजा सुग्रीव बैठा सो एक निमिष में बेलंधरपुर पहुंचे वहाँका समुद्र नाम राजा सो उसके और नलके परम For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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