SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 661
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराव ६५०॥ गिरगिर पडें सूक गये हैं सरोवर जहां और गृध्र उल्लादि दुष्ट पक्षी विचरें उस बनमें दोयचारण मुनि | अष्टदिनका कायोत्सर्ग घरेखड़े और वहां से चारकोस तीन कन्या मानो मनोग्य नेत्र जिनके जटाघरे सफेद वस्त्र पहरे विधि पूर्वक महातपकर निर्मलहै चित्त जिनको मानों वे कन्या तीनलोककी आभूषणहीहै अथानन्तर बन में अग्नि लगी सो दोनों मुनि धीर वीर बृक्षकी न्याई खड़े समस्त बन दावानल कर जरे वे दोनों निरग्रन्थ योग युक्त मोक्षाभिलाषी रोगादिक के त्यागी प्रशान्त बदन शान्त चित्त निष्पापं अवांछक नासा दृष्टि लूवे हैं भुजा जिनकी कायोत्सर्ग धरे जिनके जीवना मरना तुल्य शत्रु मित्र समान कांचन पाषाण समान सो दोनों मुनि जरते देख हनमान कम्पायमान भया वात्सल्य गुण कर मंडित महा भक्ति संयुक्त वैयावत करिवेको उद्यमी भया, समुद्रका जल लेयकर मूसलाधार मेह वर साया क्षणमात्रमें पृथिवी जलरूप होयगई वह अग्नि उस जलसे हनूमानने ऐसे बुझाई जैसे मुनि क्षमा भावरूप जल से क्रोधरूप अग्निको बुझावें मुनियों का उपसा दूर कर तिनकी पूजा करताभया और वे तीनों कन्या विद्या साधतीथी सो दावानल के दाह कर व्याकुलताका कारण भयाथा सो हनुमान के मेहकर बन का उपद्रव मिटा सो विद्यासिद्धिभई सुमेरुकी तीन प्रदक्षिणा कर मुनों के निकट आयकर नमस्कार करतीभई और हनुमानकी स्तुति करती भई अहो तात धन्य तुम्हारी जिनेश्वर में भक्ति तुम किसी तरफ जातेथे सो साधुवों की रक्षा करी हमारै कारण से बनमें उपद्रव भया सो मुनि ध्यानारूढ़ ध्यान से डिगे तब हनुमान ने पूछी तुम कौन और निर्जन स्थानक में कौन कारण रहो हो तब सबों में बडी बहिन कहती भई यह दधिमुख नामा नगर जहां राजा गन्धर्व उसकी हम तीन पुत्री बड़ी चन्द्र For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy