SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 659
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प पुराव www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेरे को तू क्या युद्ध करना जाने इत्यादि बचन परस्पर कहतेभए दोनों विद्याबल से युक्त परम युद्ध करते वारम्वार अपने लोगों करह हाकार जयजयकारादि शब्द करावतेभए गजा महेंद्र महा विक्रि शाक्त का धारक कोचकर प्रज्वलित है शरीर जिसका सो हनुमानपर श्रायुवों के समूह ढारता भया भुडी फरसी बाण शतघ्नी मुदार गदा पर्वतों के शिखर शालिवृच बटवृत्त इत्यादि अनेक आयुध हनुमान पर महेंद्रने चलाए सो हनुमान व्याकुलताको न प्राप्तभया जैसे गिरिराज महा मेघ के समूह से कंपाय मान न होय जेते महेंद्रने बाण चलाए सो हनुमानने उलका विद्याके प्रभाव से सब घूर डारे फिर आपने स्थसे उछल महेंद्र के रथ में जाय पडे दिग्गज की सूंड समान अपने जे हाथ तिनसे महेंद्र को पकड लिया और अपने रथ में आप शूरवीरोंसे पाया है जीतका शब्द जिन्होंने सही लोक प्रशंसा करते भए राजा महेंद्र हनुमानको महाचलवान परम उदयरूप देख महा सौम्य वाणीकर प्रशंसा करता भया हे पुत्र तेरी महिमा जो हमने सुनी थी सो प्रत्यक्ष देखी मेरा पुत्र प्रसन्नकीर्ति जो अब कानूने कदे न जीता रथनूपुरका स्वामी राजाइन्द्र उससे भी न जीतागया विजियार्धगिरिके निवासी विद्याधर तिन में महाप्रभाव संयुक्त समहिमाको धरे मेरापुत्रस तैंने जीता और पकडा धन्य पराक्रमते रामहावीर्यको घरे तेरे समान और पुरुष नहीं और अनुपमरूप तेरा और संग्राम में अद्भुत पराक्रम, हेपुत्रहनूमान तैने हमारे सब कुल उद्योतकिए तू चरमशरीरी अवश्य योगीश्वर होयगा विनय आदि गुणोंसे युक्त परम तेज की राशि कल्याणमूर्ति कल्पवृक्ष प्रकटभयाहै तू जगतका गुरुकुलका आश्रय और दुःखरूप सूर्य कर जे तप्ताय - मान तिनको मेघसमान इस भांति नाना महेन्द्रने अति प्रशंसा करी और चांख भर आई और रोमांच For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy