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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir BEBCa विभीषण रावण का भई सो पापकर्म रहित श्रावकव्रत का पास्कहै रावण उसके वचनको उलंघे नहीं तिन दोनों भाईयोंमें अंतराय रहित परम प्रीतिहै सो विभीषण चातुर्यता से समझावेगा और रावण भी अपयशसे शंकेगा लज्जाकर सीता को पठाय देगा इसलिये विचारकर रावण पै ऐसा पुरुषभेजनाजोवात करनेमें प्रवीण होय और राजनीति में कुशल होय अनेक नय जाने और रावणका कृपापात्र होय ऐसा हेरो तब महोदधि नामा विद्याधर कहता भया तुम कछ सुनीहै लंकाकी चौगिरद मायामई यंत्र रचा है सो अाकाशके मार्ग से आयसके नहीं पृथिवी के मार्गसे जायसके लंका अगम्यहै महाभयानक देखानजाय ऐसा मायामई यंत्र बनायाहै सो इतने बैठे हैं तिनमें तो ऐसाकोऊ नहीं जो लंकामें प्रवेश करे इसलिये पयनंजयका पुत्र श्रीशैल जिसे हनुमान कहे हे सोमहाविद्यावान बलवान पराक्रमी प्रसाफ्रूपहै उसे याचो बह रावणका यस्ममित्र है और पुरुषोत्तम है सो रावणको समझाय विघ्न टारेगा तब यह बात सबने क्याण कस हनुमान के निकट श्रीभूतनामा दूत शीत्र पछया गौतमस्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं हे। समन महाबुद्धिवान होय और महाशक्ति को घरे होय और उपायकरें तो भी होनहार होय सोही होपजैसे उदयकाल में सूर्य का उदय होय ही लेसे जो होनहार सो होयही । इति उनतालीसयां पर्वसंपूर्णम् ॥ ___ अचानतर श्रीधूतनामा दूत पक्नके समसे शीघछी आकास के मार्गलो लक्ष्मी का निवास जो बीयुस्नगर अनेक जिनभवन लिवो शोभित वहांभया जहां मन्दिर सुवर्ष रत्नमई सो तिनकी माला कार मण्डित कुन्दके पुष्प समान उज्वल सुन्दर झरोखोंसे शोभित मनोहर पवनकर स्मणीकसो दूत नगर || की शोभा और नगर के अपूर्व लोम देख माश्चर्यको प्रासमया फिर इन्द्र के महिल समान राजमन्दिर - - For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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