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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पुराव ॥६३८॥ ज्य | शक्ति को धरे हैं वह निर्वाण शिला इनोंनेउठाई सोयह सामान्य मनुष्य नहीं यह लक्ष्मण रावण को निसंदह । मारेगा, तक कैयक कहतेभए रावणने कैलास उप्रयासो वाहका पसक्रम घाटनहीं तब और कहते गए ताने । कैलास विद्याकेबलसे उपया सोआश्चर्य नहीं तब कैयक कहतेभए काहेको विवाद को जगतके कल्याण । अर्थ इनका उनका हितकराय देवो इस समान और नहीं सवणसे प्रार्थनाकर सीता लायसमको सोपो युद्धसे । क्या प्रयोजन ागे तारकमेरुपहा वलवान् भए सो संग्राममें मारेगए वे तीनसंड के अधिपति महा भाग्य । महापराक्रमी थे और और भी अनेक राजा रणमें इतेगए इसलिये साप कहिये परस्पर मित्रता श्रेष्ठ है । तब ये विद्या की विधिमें प्रवीण परस्पर मंत्रकर श्रीराम पाए अतिभक्ति से नमस्कारकर रामके समीप नमस्कार कर बैठे कैसे शोभते भए जैसे इन्द्रके समीप देव सोहैं कैसे हैं राम नेत्रों को प्रावन्द के कारण । सो कहते भए अब तुम क्यों दील करो, हो, मोविना जानकी लंकामें महादुःखसे तिष्ठे है इसलिये दीर्घ । सोच छांड अवारही लंका की तरफ गमन का उद्यम करो तब जे सुग्रीवके जांबनंदादि मंत्री राजनीति में प्रवीन हैं वे रामसे बीनती करते भए है देव हमारे टीलनहीं परन्तु यह निश्चय कहो सीताके ल्यायवे ही का प्रयोजन है अक राक्षसों सों युद्ध करना है यह सामान्य युद्धनहीं विजय पावना कठिनहै वह भरत क्षेत्रके तीन खंडका निष्कंटक से राज करे है द्वीप समुद्रोंके विषे रावण प्रसिद्धहै जासे धातुकी खंडदीप के शंका माने जंबूद्वीपमें जिसकी अधिक महिमा अद्भुतकार्य को करणहारा सर्वके उरकाशल्यहै सो युद्ध योग्य नहीं इसलिय रणकी बुद्धिछोड़ हम जोकहें हैं सो करो। हे देव उसे युद्धसन्मुख करिवमें जगतको महाक्लेश उपजे है प्राणियों के समूह का विध्वंस होयहै समस्त उत्तम क्रिया जगत् से जाय हैं इसलिये For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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