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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म ६१२॥ उस समय पटके अन्तर शोक की भरी जो सीता उसके रुदनके शब्द विभीषयने सुने और सुन कर || कहता भया यह कौन स्त्री रुदन करे है अपने स्वामी से बिछुरी है इसका शोक संयुक्त शब्द दुखको प्रकट दिखावे है ये विभीषण के शब्द सुन सीता अधिक रोवने लगी सज्जन को देख शोक बढेही हैं विभीषण पूछताभया हे बहिन तू कौन है तब सीता कहती भई में राजा जनककी पुत्री मामलकी बहिन रामकी राणी दशरथ मेरा सुसरा लक्षमण मेरा देवर सो खरदूषण से लड़ने गया उसकेपीछे मेरा स्वामी भाई की मददगा मैं बनमें अकेली रहो सो विद्र देख इस दुष्टचित्तने हरी सो मेरा भरतार मो बिना मात गा इसलिये हे भाई मुझे मेरे भरतार पै शीघ्र ही पड़ावो ये वचन सीताके सुन विभीषण रावण से विनय कर कहता भया है देव यह परनारी व्यग्निकी ज्वाला है आशी विष सर्पके फप समान मयंक रहे आप काकोलाए शीघ्र ही पाय देवो हे स्वामी में बाल बृद्ध हूं परन्तु मेरी विनती सुनो मुभी आपने अज्ञा करी थी कि उचित वर्ता हमसो कहाकरो इसलिये आप की प्राज्ञा से मैं कहूँ तुम्हारी की रूप बेलि के समूहकर सर्व दिशा व्याप्त होय रही हैं ऐसा न होय जो अपयशरूप अग्नि कर यह कोर्ति लता भस्म होय यह पर दाराका अभिलाषी प्रयुक्त अति भयंकर महानिन्द दोनों लोकका नाशकरण हारा जिससे जगत् में लज्जा उपजे उत्तम जनों से धिक्कार शब्द पाइयें है जे उत्तम जन हैं तिनके हृदय ata ऐसा नीतिकार्य कदाचित न कर्तव्य आप सकल वार्ता जानोहो सब मर्यादा आम्ही से रहें आप विद्याधरोंके महेश्वर यह बलता गंगारा काहेको हृदयमें लगावो जो पापबुद्धि परमारी सेवे हैं सो नरक में प्रवेश करे हैं जैसे लोहे का ताता गोला जल में प्रवेश करे जैसे पापी नरकमें पड़े हैं ये वचम For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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