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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४ ॥ लेभावो उनसहित महासुख से चिरकालराजकरियो और में भी तेरे पीछेही उनकेपास आऊंहूं यह माता की आज्ञा सुन बहुतप्रसन्न होय उसकी प्रशंसा कर अति आतुर भरत हजार अश्व सहित राम के निकट चलाऔर जेराम के समीप से वापिस आएथे तिनकोसंग लेचला श्राप तेजतुरंग पर चढा उतावली चाल 1 वन में पाया वह नदी असराल वहती थी सो उस में वृक्षों के लठे गेर बेडे बांध क्षण मात्र में सेना। सहित पार उतरे, मार्ग में नरनारियों को पूछते जावें कि तुम ने राम लक्ष्मण कहीं देखे वे कहे हैं यहां से निकट ही हैं सो भरत एकाग्रचित्त चले गए सघनवन में एक सरोवर के तट पर दोनों भाई सीता सहित बैठे देखे समीप धरे हैं धनुष वाण जिन के सीता के साथ वे दोनों भाई घने दिवस में पाए और भरत छह दिन में आया रामको दूरसे देख भरत तुरंग से उतरपायपियादोजाय रामके पायनपरा मर्षित होयगया तब रोमने सचेतकिया भरत हाथजोड़ सिर निवाय राम से वीनती करता भया कि हे नाथ राज्य के देयवे कर मेरी क्यों विडम्बना करी तुम सर्व न्याय मार्ग के जाननहारे महा प्रवीण मेरे इस राज्य से क्या प्रयोजन तुम बिना जीवनेकर क्या प्रयोजन तुम महा उत्तम चेष्टाके घरणहारे मेरे प्राणोंके आधारहो उठो अपने नगर चलें हे प्रभो मुझपर रूपाकरो राज्य तुम करो राज्य योग तुमही हो मुझे सुख की अवस्था देवो मैं तुम्हारे सिरपर बत्र फेरता खड़ा रहूंगा और शत्रुधन चमर ढारेगा और लक्ष्मण मन्त्री पद धारेगा मेरी माता पश्चातापरूप अग्निकर जरे है और तुम्हारी माता और लक्षमणकी माता महा शोक करे हैं यह बातभरत करही है और उसही समय शीघ्र स्थपर कड़ी अनेक सामन्तों सहित महा शोककी भरी केकई आई और राम लक्षण को उरसों लगाय बहुत रुदन करती भई रामचन्द्र ने धीर्य । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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