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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराया ॥३३॥ गांधार ३ मध्यम ४ पंचम ५ धैवत ६ निषाद ७ सो केकईको सर्वगम्य और तीन प्रकार लय शीघ्र १ मध्य २ विलंबित ३ और चार प्रकारका ताल स्थायी १ संचारी २ श्रारोहक ३ अबरोहक ४ और तीन प्रकारकी भाषा संस्कृत १ प्राकृत २ःशौरसेनी ३ स्थायितालके भूषण चार प्रसंगादि १ प्रसन्नान्त २ मध्य प्रसाद ३ प्रसन्नायवसान और संचारी के छह भूषण निवृत १ प्रस्थिल २ बिंदु ३ प्रखोलित ४ तमोमंद ५ प्रसन्न ६ आरोहण का एक प्रसन्नादि भूषण और अबरोहण के वो भूषण प्रसन्नान्त १ कुहर २ येतेरह अलंकार और चारप्रकार वादिन वे ताररूप सोतांत १और चामके मढेवे शानद्धर और बांसुरी आदि फकके बाजे वेशुक्रि और क्रांसीकेबाने वेघनश्येचारप्रकारकेवादिनजैसे केकई बजावे तैसे और त बजावे गीत नृत्भवादित्र येतीन भेदहें सोनृत्योंतीनों पाए औरस्सकभेद नव शृंगार १ हास्य २ करुणा ३ । वीर ४ अद्भुत ५ भयानक ६ रौन ७ बीमत्स शांत तिनके भेद जैसे केकई जाने तैसे और कोई म जाने अधर मात्रा और मणितशास्रमें निपुण गधपच सर्व में प्रवीण व्याकरण छन्द अलंकार नाम माल लक्षण शास्त्रतर्क इतिहास और चित्रकला प्रति प्रवीण तथा रत्नपरीक्षा अश्वपरीचा नर परीक्षा शस्त्र । परीक्षा गज परीक्षा वृषपरीचा वस्त्रपरीक्षा सुगन्धपरीक्षा मुगन्धादिक द्रव्यका निपजायना इत्यादि | सब बातोंमें प्रवीण ज्योतिष विद्या निपुण बालवृद्ध तरुण मनुष्य तथा घोड़ेहाथी इत्यादि सर्वके इलाज | जाने मंत्र औषधादि सर्वमें तत्पर वैद्य विद्यानिकाल सर्वकलामें सावधान महाशीलवन्ती महामनोहर युद्ध कलामें अतिप्रवीण शुमारादि कलामें अतिनिपुगा विनयही प्रामुषमा जिसके कला और गुण और रूप | में ऐसी कन्या और नहीं मौसमस्यामी कहे हे हे श्रेणिक बहुत कहनेसे क्या केकईके गुणों का वर्णन कहाँ For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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