________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म कर दीप्तहै मन जिसका महाकूर जो भृकुटी तिनसे भयानकहै मुख जिसका कुटिलहै केश जिसके जब पुराण र लग धनुषके बाण तान बरुणपर चलावे तब लग वरुणके पुत्रोंने रावणके बहनेऊ खरदूषणको पकड़
लिया तब रावणने मनमें विचारी जो हम वरुणसे युद्धकरें और खरदूषणका मरणहोय तो उचित नहीं इसलिये संग्राम मने किया जे बुद्धिवानहें वे मंत्रमें चूके नहीं तब मंत्रियोंसे मंत्रकर सब देशोंकेराजा बुलाए शीघ्रगामी पुरुष भेजे सवनको लिखा बड़ी सेनासहित शीघ्रही श्रावो और राजा प्रल्हादपर भी पत्रलय मनुष्य आया सो राजा प्रल्हादने स्वामीकी भक्तिकर रावणके सेवकका बहुत सन्मान किया और उठ कर बहुत अादरसे पत्र माथे चढ़ाया और बांचा सो पत्रमें इस भांति लिखाथा कि पातालपुरक समीप कल्याणरूप स्थानक तिष्ठता महाक्षम रूप विद्याधरोंके अधिपतियोंका पति सुमाली का पुत्र जो रत्नश्रवा उसका पुत्र राक्षस बंशरूप अाकाश में चन्द्रमा ऐसा जो रावण सो आदित्य नगरके राजा प्रल्हादको आज्ञा करे है कैसाहै प्रल्हाद कल्याण रूप है । न्याय का वेत्ता है देश काल विधान का ज्ञायकहै हमारा बहुत बल्लभहै प्रथमतो तुम्हारे शरीरकी कुशल पूछे है फिरयह समाचारहैकि हमकोसर्व खेचर भचर प्रणामकर हैं हाथोंकी अंगुली तिनके नखकी ज्योतिकर सो ज्योतिरूप किएहैं निज सिर के केश जिनने और एक अति दुर्बुद्धि वरुण पाताल नगरमें निवास करे है सो आज्ञासे पराङ्मुखहोय लड़नेको उद्यमी भया है हृदयकी व्यथाकारी विद्याधरोंके समूहसे युक्तहै समुद्रके मध्यद्वीप को पाय कर बहुत दुरात्मा गर्वको प्राप्त भयाहै सो हम उसके ऊपर चढ़कर पाएहैं बड़ा युद्धभयावरुणकेपुवोंने खरदूषणको जीवता पकड़ाहै सो मंत्रियों ने मंत्र कर खरदूषणके मरणकी शंका से युद्ध मने कियाहै |
For Private and Personal Use Only