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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्न गोचरी राचसोंकी सेना में ऐसे पड़े जैसे माते हाथी समुद्रमें प्रवेशकरें और सहसरश्मि अतिक्रोधको करते, पुरात हुये वाणोंके समूह से जैसे पवन मेघको हटावे तैसे शत्रुवों को हटावतेभये तब द्वारपालने रावणसे कही हे देव देखो इसने तुम्हारी सेना हठाई है यह धनुषका घारी स्थपर चढ़ा जगत्को तृणवत देखे है इस के बापोंकर तुम्हारी सेना एक योजनपीछे हटी है तबरावण सहसरश्मि को देख आप त्रैलोक्य मण्डण हाथी पर सवार चढे रावणको देखकर शत्रुभी डरें वह बाणोंकी वर्षा करते भए सहसरश्मिको स्थसे रहितकिया तब सहसूरश्मि हाथीपर चढ़कर रावणके सन्मुख आए और वाण छोड़े सो रावणके वक्तरको भेद अंगविषे चुभे] तब रावणमे बाण देहसे काढ़डारे सहलरिश्मने हंसकर रावणसे कहा अहो रावण तू बड़ा धनुषधारी कहावे है ऐसी विद्या कहांसे सीखा तुझे कौन गुरु मिला पहिले धनुष विद्यासीख फिर हमसे युद्ध करियो ऐसे कठोर शब्दों से रावण क्रोधको प्राप्त भए सहखरिश्मके वशमें सेल की दीनी तब सहस्ररश्मि के रुधिरकी मारा वसी जिससे नेत्र घूमने लगे पहिले अचेत होगया पीछे सचेत होय आयुध पकड़ने लगा तब रावण उबलकर सहसरश्मि पर माय पड़े और जीवता पकड़लिया बांधकर अपने अस्थान लेआए तब सबविद्या-1 घर आश्चर्यको मासमये कि सहस्ररश्मि जैसे योषाको रावण पकड़े कैसे हैं रावण धनपति बचके जीतनेहारे । यमके मालमन कस्लेहारे कैलाशके कंपाक्नहारे सहसूरश्मि का यह वृतांतदेख सहसूरश्मि जो सूर्यसो भी मामो भयकर अस्तापखको भाप्तभया अन्मकार फेलगया भावार्थ रात्रीका समपभया भला कुरा दृष्टिमें | माये तब पलमा का विम्ब उदय भया सो अन्धकार के हरपेको प्रवीण मानों रावण का निर्मलयश ही प्रगम है युद्धतिले जे जोषा चापलभये बेतिनका वैद्योंसे यत्न कराया और जो मयेथे तिनको अपने For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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