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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kalassagarsuri Gyanmandir wyon जे महापुरुष तिनको चिन्तवन करें हैं वे अतिशयकर भावनके समूहकर नम्रीभूत होय प्रमोदको घर हैं तिनको अनेक जन्मोंका संवित किया जो पाप सो नाशको प्राप्त होयहै औरजे सम्पूर्ण पुराण का | श्रवण करें तिनका पाप दूर अवश्य ही होय यामें संदेह नहीं कैसा है पुराण चन्द्रमा समान उज्ज्वल है इस लियेजे विवेकी चतुर पुरुषहें वे इस चरित्रका सेवन करें यह चरित्र बड़े पुरुषकर सेवन योग्य है। इस ग्रन्थ विषे ६ महा अधिकार हैं। (१)लोकास्थिति(२)वंशोंकीउत्पत्ति(३)वनवास(४)युद्ध(५)लवअंकुशकावृतान्त(६)रामचंद्रजीकानिर्वाण। अथ लोकास्थिति महा अधिकार मगध देशवे राना नगर श्री महावीर स्वामी के म मोरखका भामा और राजासिक का रामचन्द्रको कथाका पूचना । जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मगध देश अति सुन्दर है, जहां पुण्याधिकारी सेहें इन्द्र के लोक समान सदा भोगोपभोग करहै जहां योग्य व्यवहार से लोक पूर्ण मर्यादा रूप प्रवृतेहें और जहां सरोवग्में कमल फूल रहे हैं और भूमि मे सांठेन के बाड़े शोभायमान हैं और जहां नाना प्रकार के अन्नोंके समूह के पर्वत समान ढेर होय रहेहैं अरहट की घड़ीसे सींचे जीगके खेत हरित होय रहेहैं. जहां भूमि अत्यन्त श्रेष्ठ है | सर्व वस्तु निपजेहैं। चांवलों के खेतोभायमान और मुंगमोठ और ठौर फूल रहेहें गेहूंपादिअन्नको किसी भांति विघ्न नहीं और जहां भेंस की पीठ पर चढे ग्याल गाहें गऊओं के समूह अनेक वर्ण के हैं जिनके गलेमें घण्टा बाजे हैं और दुग्ध झरती अत्यन्त शोभेहें, जहां, दूधमयी धरती हो रहीहै, अत्यन्त स्वादु । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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