SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुख दांत रूपी कीड़ान का भरा हुआ विल समानहै और जे सत्पुरुषन की कथा के वक्ताह अथवा श्रोता है सो ही पुरुष प्रशंसा योग्य हैं और शेष पुरुष चित्र के पुरुष समान जानने । गुण और दोषन के संग्रह विषे जे उत्तम पुरुष हे ते गुणन ही को ग्रहण करे हैं जैसे दुग्ध और पानीके मिलाप विषे हंस दुग्ध ही को ग्रहणकरे है और राग दोषनके मिलाप विष जे नीच पुरुष हैं ते दोषहीको ग्रहण करे हैं जैसे गजके मस्तक विषे मोती मास दोऊ हैं तिन काग मोतीको तज मासही को ग्रहण करे है। जो दुष्ट हैं ते निदों रचनाको भी दोष रूप देखेहें जैसे उल्लू सूर्यके बिम्ब को तमाल वृक्षके पत्र समान | स्याम देखे है, जे दुर्जन हैं ते सरोवरमें जल पानेका जाली समान हैं जैसे जाली जल को तज तृण पत्रादि काठकादिक का ग्रहण करे तैसे दुर्जन गुणको तज दोषनहीको धारे हैं इस लिये सजन और दुर्जनका ऐसा स्वभाव जानकर जो साधु पुरुष हैं वे अपने कल्याण निमित्त सत्पुरुषनकी कथाके प्रबंध विषेही प्रवृतेहैं सत्पुरुषनकी कथाके श्रवणसे मनुष्योंको परम सुख होयहै जे विवेकी पुरुषहें उन को धर्म कथा पुण्यके उपजावनेका कारणहै सो जैसा कथन श्रीवर्द्धमान जिनेन्द्रकी दिव्य ध्वनिमें खिरा तिसका अर्थ गौतम गणधर धारते भए। और गौतमसे मुधर्माचार्य धारते भए ता पीछे जम्बूस्वामी प्रकाशते भए जम्बूस्वामीके पीछे पांचश्रुत केवली और भए वे भी उसी भांति कथन करते भये इसी प्रकार महा पुरुषनकी परम्पराकर कथन चला पाया उसके अनुसार रविषणाचार्य न्याख्यान करते भये । यह सर्व रामचन्द्रका चरित्र सज्जन पुरुष सावधान होकर सुनो यह चरित्र सिद्ध पदरूप मंदिर की प्राप्तिका कारणहै और सर्व प्रकारके मुखका देनहारा है। और जे मनुष्य भीरामचन्द्रको श्रादि दे For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy