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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण १६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्रभए जो सदा उपकरी शीलवान पण्डित प्रवीण धीर लक्ष्मीवान शूखीर ज्ञानी अनेक कला संयुक्त सम्यक दृष्टि महाबली राजनीति में प्रवीण धीर्यवान दया कर भीगा है चित्त जिनका विद्याके समूह कर मंडित कांतिवंत तेजवंत हैं। ऐसे पुरुष संसार में बिरले ही हैं वह समस्त अढाई दीपके जिनमंदिरों के दर्शन में उद्यमी हैं जिन मंदिर अति उत्कृष्ट प्रभा से मंडित हैं बाली तीनों काल अति श्रेष्ठ भक्ति युक्त संशय रहित श्रद्धावंत जम्बूद्वीप के सर्व चैत्यालयों के दर्शन कर या महापराक्रमी शत्रुपक्ष का जीत हारा नगर के लोगों के नेत्र रूपी कुमुद के प्रफुल्लित करने को चन्द्रमा समान जिसको किसी की शंका नहीं किहकन्धपुर में देवों की न्याई रमै किहकन्धपुर महा रमणीक नाना प्रकार के रत्नमई मंदिरों से मंडित गज तुरंग स्थादि से पूर्ण जहां नाना प्रकार का व्यापार है और अनेक सुन्दर हाटों की पंक्तियों से युक्त हैं जहां जैसे स्वर्ग विषे इन्द्र रमै तैसे रमे हैं । अनुक्रम से जिसके छोटा भाई सुग्रीव भयावह भी महावीर बीर मनोज्ञ रूप कर युक्त महा नीतिवान विनयवान हैं ये दोनों ही बीर कुल के आभूषण होते भए जिनका आभूषण बड़ों का विनय है सुग्रीव के पीछे श्री प्रभा बहिन भई जो साचात लक्ष्मी रूप में अतुल्य है और किहकन्धपुर में सूर्यरजका छोटा भाई रतरज उसकी राणी हरिकांता उसके पुत्र नल और नील होते भए सुजनों को आनन्द के उपजाने हारे महासामन्त रिपुकी शंका रहित मानों किहकंधपुरके मंडन ही हैं इन दोनों भाइयों के दो दो पुत्र महा गुणवन्त भए राजा सूर्यरज अपने पुत्रों को योवनवन्त देख मर्यादा के पालनहारे जान चाप विषयों को विषमिश्रित अन्न समान जान संसारसे विरक्त भए राजा सूर्यरज महाज्ञानवान हैं बालीको पृथ्वी के For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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