________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०५८
नाथका भाषा मार्ग उसे उरमें धारता भया जन्ममरणके भयसे कंपायमान भया है हृदय जिसका ढीले पुराण किये हैं कर्मबंध जिसने धोयडाले हैं रागादिककलंकजिसनेमहावैराग्यरूपहेचित्तजिसकाक्लेशभावसेनिवृत " जैसामेघपटलसे रहित भानु भासे तैसा भासताभया मुनित्रतधारिवेकाहै अभिप्राय जिसके उस समय अरह ।
दास सेठाया तब उसे श्रीराम चतुर्विध संघकी कुशल पूछते भए तब वह कहताभया हे देव तुम्हारे कष्ट कर मुनियों का भी मन अनिष्ट संयोगको प्राप्तभया ये बात करे हैं और खबर आई है कि मुनिव्रतमुव्रत नाथके बंशमें उपजे चार ऋद्धिके धारक स्वामी सुव्रतमहाबतके धारक कामक्रोध के नाशक आये हैं यह बात सुनकर महामानन्द के भरे राम रोमांच होय गयाहै शरीर जिनका फूल गये हैं नेत्रकमल
जिनके अनेक भूचर खेचर नृपों सहित जैसे प्रथम बलभद्रविजय स्वर्णकुम्भ स्वामी के समीप जाय मुनि । भये थे तैसे मुनि होनेको सुव्रतमुनिके निकट गये वे महाश्रेष्ठ गुणोंके धारक हजारां मुनि माने हैं अाज्ञा जिनकी तिनपै जाय प्रदक्षिणादेय हाथ जोड सिर निवाय नमस्कार किया साक्षात मुक्तिके कारण महा मुनि तिनका दर्शनकर अमृतके सागरमें मग्नभये परमश्रद्धाकर मुनिराजसे रामचन्द्रने जिनचंद्रकी दीता धारवेकी बिनती करी हे योगीश्वरोंके इन्द्र मैं भव प्रपंचसे विरक्त भया तुम्हारा शरण ग्रहा चाहूं हूं तुम्हारे प्रप्तादसे योगीश्वरोंके मार्गमें बिहार करूं इस भांति रामने प्रार्थना करी कैसे हैं राम धोये हैं समस्त रागद्वेषादिक कलंक जिन्होंने तब मुनींद्र कहते भए हे नरेंद्र तुम इस बातके योग्यही हो यइसंसार क्यापदार्थह ग्रह तजकरतुमजिनधर्मरूप समुद्रका अवगाहै करो यह मार्ग अनादिसिद्धवाधारहितअविनाशी मुखका देवहाला तुपसे बुद्धिवानही आदरें ऐसामुनिने कहा तब रामसंसारसे विरक्तमह प्रवीणजैसे सूर्य ।
For Private and Personal Use Only