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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घराण २०२० | कहें जिनका संपूर्ण वर्णन इन्द्रादिक देवभी न कर सकें, हे कांते यह पांडूक बन के चैत्सालय मानों सुमेरु का मुकट ही है अति रमणीक हैं इसभांति महाराणी पटराणीयों से हनुमान वात कस्ते जिनमन्दिरों की प्रशंसा करतेमंदिरके समीपाये विमानसे उतर महाहर्षितहोय प्रदक्षिणा दई वहाँ श्रीभगवान्के अकृत्रिम । प्रतिविंवसर्व अतिशय विराजमान महा ऐश्वर्यकर मंडित महातेज पुञ्ज देदिप्यमान शरदके उज्ज्वल वादरे ! तिनमें जैसे चंद्रमा साहे तैसे सर्वलक्षण मंडित हनूमान हाथजोड़ रणवाससहित नमस्कार करता भया कैसा | ।। है हनमाने जैसे ग्रहतारावोंके मध्य चंद्रमा सोहे तैसा राजलोकके मध्य सोहे है जिनेन्द्र के दर्शनकरउपजाहै | अतिहर्षजिसको सोसंपूर्णस्त्रीजन अतिश्रानंदकोप्राप्तभई रोमांचहोयआये नेत्रप्रफुल्लितभए विद्याधरी परम | भक्तिकर युक्त सर्व उपकरणों सहित परम चेष्टा की धरणहारी महा पवित्र कुल में उपजी देवांगनावों की || न्याई अति अनराग से देवाधि देवका विधिपूर्वक पूजा करती भई महापवित्र पद्मइद आदिक काजल, ओर महा सुगंध चन्दन मुक्ताफलावों के अक्षत स्वर्ण मई कमल तथा पद्मसग मणि मई तथा चन्द्रकांति मणि भई तिन कर पूजा करतीभई और कल्पवृक्षों के पुष्प और अमृतरूप नैवेद्य और महाज्योति रूप रत्नोंके दीप चढ़ाए और मलयागिरि चन्दनादि महासुगंध जिसकर दशोंदिशा सुगंधमई होयरही हैं | और परमउज्ज्वल महाशीतल जल और अगुरुअादि महापवित्र द्रव्योंकर उदजा जोधूपसो खेवतीभई और। महा पवित्र अमृत फल चढ़ावतीभई और रत्नोंके चूर्णकर मंडला मांडती भई महा मनोहर अष्टद्रव्यों से पतिसहित पजा करतीभई हनूमान राणीसहित भगवान की पजा करता कैसे सोहे है जैसा सौधर्म इन्द्र । इन्द्राणी सहित पूजा करता सोहे कैसा है हनुमान जनेऊ पहिरे सर्व आभषण पहिरे महीनवस्त्र पहिरे महा । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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