SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1013
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण थे सो बलात्कार की स्थावर सम करडारे व इस अवस्था से जीवते बचें तो श्रावग के व्रतचादरें और उसी समय इनके माता पिता आए बारम्वारमुनिको प्रणामकर विनती करते भए हेदेव यहकुपूत पुत्र हैं। १००३ | इन्होंने बहुत बुरी करी थाप दयालु हो जीवदान देवो साघु बोले हमारे काहू से कोप नहीं हमारे सब मित्र बांधव हैं तब यक्ष लाल नेत्रकर अति गुंजार से बोला और सबों के समीप सर्व वृतांत कहा कि जो प्राणी साधुवों की निन्दा करें सो अनर्थको प्राप्त होवें जैसे निर्मल कांच विषे बांका मुख कर निरखे तो बांका ही दीखे तैसे जो साधुवों को जैसा भावकर देखे तैसाही फल पावे जो मुनियों की हास्य करे सो बहुत दिन रुदन करे और कठोर बचन कहे सो क्लेश भोगवे और मुनिका घबकरे तो अनेक कुमरणपावे द्वेष करे सोपाप उपार्जे भव भव दुख भोगवे और जैसा करे तैसा फल पावे यक्ष कहे है है विप्र तेरे पुत्रों के दोषकर में कीले हैं। विद्या के मानकर गर्वितमायाचारी दुराचारी संयमीयों के घातक हैं ऐसे बचन यक्षने कहे तब सोमदेव विप्र हाथ जोड़ साधु की स्तुति करता भया और रुदन करता भया आपको निंदता छाती कूटता ऊर्घ भुजाकर स्त्री सहित बिलाप करता भया तत्रमुनि परम दयालु यक्षको कहते भए हेसुन्दर हे कमलनेत्र यह बालबुद्धि हैं इन atra तुम क्षमाकरो तुम जिनशासन के सेवक हो सदा जिनशासन की प्रभावना करोहो इस लिए मेरे कहे से इन से क्षमा करो तब यक्ष ने कही आप कहा सो ही प्रमाण वे दोनों भाई छोडे, तब यह दोनों भाई मुनि को प्रदक्षिणा देय नमस्कार कर साधु का व्रत धरिबे को असमर्थ इस लिये सम्यक् सहित श्रावक के व्रत आदर भए जिनधर्म की श्रद्धा के धारक भए और इनके माता पिता व्रतले छाड़ते भए सो वे तो अतके योग से पहिले नरकगए और यह दोनों विप्र पुत्र निसंदेह जिनशासन रूप अमृत For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy