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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय. (२१) त्पत्तिका समय विक्रम पूर्व ४०० वर्ष पर जनता अधिक विश्वास रख सके और उपकेश वंशको प्राचीन माननेमें श्रद्धासंपन्न बने । (१) विक्रमकी बारहवी शताब्दी और इनके पिच्छेके सेंकडो हजारों शिलालेख उपकेश ज्ञातिके मिलते है वास्ते उस समयके प्रमाण यहाँ देने की आवश्यक्ता नहीं है ईसके पूर्वकालिन प्रमाणोंकी खास जरूरत है वह ही यहापर दिये जाते हैं (२) समराइच कथाके सारमें लिखा है कि उएस नगरके लोक ब्राह्मणोंके करसे मुक्त है अर्थात् उपकेश ज्ञातिके गुरु ब्राह्मण नहीं है यह बात विक्रम पूर्व ४०० वर्षकी है और कथा विक्रमकी छठी सदीमें लिखी गई है उस समयसे पूर्व भी यह मान्यता थी. इस लेखसे उपकेश ज्ञातिकी प्राचीनता सिद्ध होती है । यथा तस्मात् उकेश ज्ञातिनां गुरखो ब्राह्मणा नहि। . उएसनगरं सर्वे कर रीण समृद्धिमत् ॥ सर्वथा सर्व निर्मुक्तमुएसा नगरं परम् । तत्प्रभृति सजातमिति लोकप्रवीणम् ॥ ३६॥ (३) आचार्य बप्पभट्टीसूरि जैन संसारमें बहुत प्रख्यात है जिन्होंने ग्वालियरका राजा श्रामको प्रतिबोध दे जैन बनाया उसके एक राणि व्यवहारियाकी पुत्री थीं उसकि सन्तानको श्रोसवंस (उपकेशवंस) में सामिल कर दी उनका गौत्र राजकोष्टागर हुवा जिस ज्ञातिमें सिद्धाचलका अन्तिमोद्धार कर्ता कर्माशाह हुवा जिस्का शिलालेख शत्रुजय तीर्थपर आदीश्वरके मन्दिरमें है वह लेख प्राचीन For Private and Personal Use Only
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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