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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाभारत, रामायण और पुराणों में आंध्रो, पुरिंद्रो और शबरों को दक्षिण भारत की जातियाँ बतलाया है। पुण्ड्र लोग बंगाल के उत्तर भाग में रहते थे। आर्यों के आने के पश्चात् बहुत सी प्राचीन जातियाँ तो लुप्त हो गई या अन्य जातियों में मिल गई, अथवा अपना प्राधान्य खो बैठी और अनेक जातियाँ प्रकाश में आई। पंजाब की पांच जातियां- पुरु, अनु, द्रयु, यदु और तुर्वश पीछे चली गई। अथर्वेद में 'मागध' नाम की जाति का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में मागधों को व्रात्यों से सम्बद्ध बतलाया है। विदेशी विज्ञान जिम्मर (Zimmer) ने अथर्ववेद और यजुर्वेद में उल्लिखित मागधों को वैश्य और क्षत्रिय के मेल से उत्पन्न एक मिश्रित जाति बताया है। 'वैदिक इण्डेक्स' में मगध गंधर्वो का देश था, इसलिये मागधों को गंधर्व बतलाया है। यह निश्चित है कि मागधों का पूर्ण रूप से ब्राह्मणीकरण न हो सका। ___ आरम्भ में वैदिक आर्यों में जातिभेद नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि पौरोहित्य आदि शासन का काम संयुक्त था। सतत् युद्धों ने वैदिक आर्यों को विवश किया कि अपने अपने व्यवसाय के अनुसार वे अपने को विभिन्न समुदायों में विभाजित करते। धीरे धीरे यौद्धा लोगों का स्थान उन्नत होता गया और वे क्षत्रिय कहलाए। ऋग्वेद के अंतिम पुरुषसूक्त में राजन्य, ब्राह्मण, वैश्य, शूर्द चार वर्णों का निर्देश है। जिम्मर (Zirnmar) मानता है कि ऋग्वेद की जातिहीन परम्परा जो यजुर्वेद की जातिगत परम्परा के रूप में परिवर्तन हुआ, इसका सम्बन्ध वैदिक आर्यों के पूरब की ओर बढ़ने से है। विश्वामित्र और कण्ड्व को क्षत्रिय माना है और विश्वामित्र, जमदाग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ट, काश्यप और अगस्त्य ब्राह्मणों के पूर्व पुरूष हैं। महाभारत में कहा गया है कि आंगिरस, काश्यप, वशिष्ट और भृगु से प्राचीनतम पुराहितों की परम्परा चली है। उपनिषदों से यह ज्ञात होता है कि क्षत्रियों के पास सर्वोच्च विद्याथी और ब्राह्मण उनके पास जाते थे। क्षत्रिय वर्ग दार्शनिक चर्चाओं में खूब रस लेते थे। वे ज्ञान के मात्र रक्षणकर्ता ही नहीं, स्वयं ज्ञानी और ब्राह्मण तक उनके शिष्य थे। प्रो होपकिंस ने माना है कि भारत की धार्मिक क्रांति के अध्ययन में विद्वान लोग अपना सारा ध्यान आर्य जाति की ओर लगादेते हैं और भारत के समस्त इतिहास में द्रविड़ों ने जो भाग लिया है, उसकी उपेक्षा कर देते हैं, वे महत्व के तथ्यों तक पहुँचने से रह जाते हैं।' 1. जैन साहित्य का इतिहास, पृ. 21 2. वही, पृ. 27 3. अथर्ववेद, 5-12-14 4.जैन साहित्य का इतिहास, पृ. 29 5. Vedic Index 2, 936 6. Vedic Age (Indian History Association) Page 430 7. Prof. Hopkins, Religions of India, Page 4-5 - For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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