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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 261 से गर्हित कुलों में जन्म होता है, वह नीच गोत्र है।' ‘पद्मपुराण के अनुसार अयोग्य आचरण करने वाला नीच होता है। अनार्यभाचरन् किञ्चिजायते नीवनोरः। ओसवंश के प्रारम्भिक 18 गोत्र परम्परागत और धार्मिक मान्यता के अनुसार वीर संवत् 70 में ओसियां में आचार्य रत्नप्रभसूरिजी ने अनेक क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर जैनधर्म में दीक्षित कर महाजनवंश की नींव रखी और उसी समय महाजनवंश के 18 गोत्रों की भी नींव पड़ी। 'जैन जाति महोदय' के अनुसार आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपलदेव राजा को प्रतिबोध दिया, उस समय 18 गोत्र की स्थापना की। एक मत है कि मंत्रीपुत्र की खुशी में सूरिजी की सेवा में 18 रत्नों का थाल रखा था, तदनुसार 18 गोत्र हुए। दूसरा मत है कि देवी के मंदिर में पूजा करने गये हुए श्राद्धवर्ग के 18 गोत्र स्थापन किये। तीसरा मत है कि 18 कुल ने क्षत्रियों को प्रतिबोध दिये, जिनसे 18 गोत्र हुए। 18 गोत्रों की स्थापना एक समय हुई या अलग अलग समय में हुई हो, किन्तु इतना तो निश्चय है कि उपकेशपुर में रत्नप्रभसूरि जी ने उपकेशवंश (महाजनवंश) की स्थापना कर वीर संवत् 70 में महावीर मूर्ति की प्रतिष्ठा कर प्रारम्भ में निम्नांकित गोत्र थे। इनके दक्षिण बाहु में निम्नांकित गोत्र थे. 1. तातहड़ गोत्र 2. बापणागोत्र 3. कर्णाटगोत्र 4. वलता गोत्र 5. मोरक्षागोत्र 6. कुलहट गोत्र 7. वीरहरप्गोत्र 8. श्री श्रीमाल गोत्र 9. श्रेष्ठिगोत्र दूसरे ओर वामबाहु के निम्नांकित गोत्र थे - 1. सुचंवंतिगोत्र 2. आदित्यनागगोत्र 3. भूरिगोत्र, 4. भाद्रगोत्र 5. चिंचटगोत्र 6. कुमट गोत्र, 7. कनोजियेगोत्र 8. डिडुगोत्र 9. लघुश्रेष्ठिगोत्र। गोत्र संख्या ओसवंश के उद्भव से लेकर आज तक अनेक गोत्र बनते गये । धीरे धीरे इनकी शाखाओं-प्रशाखाओं में निरंतर वृद्धि होती गई। वर्तमान में ओसवालों के गोत्रों की संख्या ठीक ठीक नहीं बताई जा सकती। यति रूपचंदजी के 'जैनसम्प्रदाय शिक्षा' के अनुसार यह संख्या 440 और ‘महाजन वंश मुक्तावली' के यति रामलालजी के अनुसार यह संख्या 609 है। एक 1. वही, 8-12 (टीका सवार्थसिद्धि) गोत्रं द्विविधम- उच्चैर्गोत्रं नीचैर्गोत्रमिति। यस्ययोदया ल्लोकपूजितेषु कुलेषु जन्न तदुच्चेर्गोत्रम् । यहुदयाद् गर्हि तेषु कुलेषु जन्म तन्नी चैगोत्रम्। 2. पद्म पुराण, 58-218 3. महाजन वंश मुक्तावली, पृ 52-53 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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