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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 260 चतुर्थ अध्याय ओसवंश के उद्भूत गोत्र : पूर्व जातियां गोत्र भारतीय जन जीवन में गोत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। गोत्र का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है'गूयते शब्द्यते इति गोत्रम्'- जो कहा गया है। ___ मानव समाज में नाम का विशेष महत्व है। धीरे धीरे सामाजिक सम्बन्धों और रीतिरिवाजों में भी इसने स्थान प्राप्त कर लिया। जैन साहित्य में गोत्र की व्याख्या वंश परम्परा के आधार पर की जाने लगी। वैदिक साहित्य के अनुसार प्रारम्भ में ऐसे आठ ऋषि हए. जो गोत्र कर्ता माने जाते हैं । ये आठ ऋषि हैं- जमदग्नि, भरद्वाज, विश्वामित्र, अत्रि, गौतम, वशिष्ठ, काश्यप और अगस्त्य । जमदग्निर्भरद्वाजो विश्वामित्रत्रात्रि गौतमः । वशिष्ठः कश्यपोऽगस्त्यो मुनयो गोत्र कारणम् ॥ ब्राह्मण परम्परा में ये मंत्रदृश ऋषि हुए हैं और इन्हीं से गोत्र परम्परा चली है। साधारणत: ब्राह्मण परम्परा में गोत्र रक्त परम्परा का पर्यायवाची माना गया है। जैनधर्म में गोत्र का विचार प्राणी की आभ्यंतर वृत्ति की दृष्टि में रखकर किया गया है। जैनधर्म के अनुसार व्यक्ति की आभ्यंतर वृत्ति के साथ इसका सम्बन्ध होने के कारण वह गुण नाम है।' मोहनीय कर्म के समान गोत्र को आत्मा में निबद्ध कहा है। कुल, गोत्र, वंश, सन्तान - ये एकार्थवाची नाम हैं। गोत्र की व्याख्या में कुछ व्याख्या पर्यायपरक है, कुछ व्याख्याएं आचारमूलक है और कुछ व्याख्याएं कुल, वंश या सन्तानपरक हैं। ‘पद्मपुराण' में कहा गया है कि कोई जाति गर्हित नहीं होती। वास्तव में गुण कल्याण के कारण होते हैं, क्योंकि जिनेद्रदेव व्रतों में स्थित चाण्डाल को भी ब्राह्मण में स्वीकार किया है। इस कथन से यह पता चलता है कि सामान्यत: धर्म में जाति व्यवस्था को स्थान प्राप्त नहीं है। उमास्वामी के तत्वार्थसूत्र' में कहा है, उच्चैनी चैश्च।' गोत्र उच्च और नीचे के भेद से दो प्रकार का होता है। गोत्र दो प्रकार का है- उच्चगोत्र और नीचगोत्र। जिसके उदय से लोकपूजित कुलों में जन्म होता है, वह उच्चगोत्र है और जिसके उदय 1. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचंद्र शास्त्री, वर्ण, जाति, धर्म, पृ 105 2. पद्मपुराण 3-203 नजाति गर्हिता काचित गुणा: कल्याणकारणम्। __व्रत स्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ 3.उमास्वामी, तत्वार्थसूत्र, 8-12 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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