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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में) को अहिंसामूलक जीवन संस्कृति का पाठ पढ़ाया। जैनाचार्यों ने पंच महाव्रतों/ अणुव्रतों के द्वारा सांस्कृतिक प्रतिमानों की स्थापना कर वीरता के प्रतीक क्षत्रियों और राजपूतों का कायाकल्प कर उन युद्धवीरों को कर्मवीर, धर्मवीर, दानवीर और दयावीर बना दिया। यह केवल धर्मांतरण न होकर, सांस्कृतिक परिवर्तन की प्रक्रिया थी। इस सांस्कृतिक परिवर्तन की प्रक्रिया में ओसवंश का उद्भव और विकास हुआ। इस दृष्टि से ओसवंश को जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों की प्रयोगशाला कहा जा सकता है। जैनाचार्यों ने कलाकारों की तरह जिन मनुष्यों को बिना तूली और छेनी के रचा और गढ़ा, उससे नये समाज की, नयी संस्कृति की रचना हुई। जैनाचार्यों ने ओसवंश को जो दायित्व सौंपा, उसे ओसवाल जाति ने बड़ी बखूबी से निभाया। श्वेताम्बर परम्परा के जैन साहित्य, जैन ग्रंथागारों, जैन तीर्थों और जैन शिक्षण संस्थाओं आदि के द्वारा ओसवंश के प्रतिष्ठित नररत्नों और महिलाओं ने जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों के संरक्षण, संवर्धन, सम्प्रेषण और सृजन में योग दिया। यह मेरी मान्यता है कि सांस्कृतिक प्रतिमानों की दृष्टि से ओसवंशजैनमत का प्रतिरूप ही नहीं ,किन्तु सार, निचौड़ और आदर्श प्रतीकात्मक रूप है। ओसवंश के उद्भव और विकास के प्रथमखण्डको 'जैनमत और ओसवंश' के रूप में प्रस्तुत करते हुए मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। मुझे विश्वास है कि समस्त बिखरी सामग्री को अनुसंधानपरक प्रबन्धात्मक दृष्टि से इसमें समेटने की चेष्टा की गई है। इस मौलिक शोधप्रबन्ध में जिन विद्वजनों की कृतियों के विचारों और निष्कर्षों का उपयोग किया गया है, उनका मैं उपकृत है। इसमें विद्वानों के प्रस्तुत तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण ही नहीं , व्यवस्थित और मौलिक प्रस्तुतीकरण भी है। ___ अंत में मैं अपने अग्रज लोढ़ा कुलभूषण चंचलमल जी के प्रति पुन: आभार व्यक्त करता हूँ, जिनकी प्रेरणा, प्रोत्साहन और आशीर्वाद से ही यह संभव हो सका है। इस ग्रंथ के लेखन में मेरे काकाश्री प्रो. कल्याणमलसा लोढ़ा ने भी समय समय पर अभिप्रेरित कर मुझ पर महती कृपा की है। सी 7, भागीरथ कालोनी, चौमू हाउस, सी-स्कीम, जयपुर- 302001 दूरभाष: 0141/362334 महावीर मल लोढ़ा For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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