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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया गया है। प्रथम अध्याय ‘ओसवंश के पहले : भारतीय जन' में भारत की प्रजातियों, वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के विशाल बियावान में ओसवंश को ढूंढने की चेष्टा की गई है। ___ जैनमत ओसवंश का प्रेरणा स्रोत है और जैनाचार्य ओसवंश के सूत्रधार रहे हैं। द्वितीय अध्याय 'ओसवंश का प्रेरणा स्रोत : जैनमत' में जैनमत का सम्पूर्ण इतिहास सिमट गया है। पूर्व महावीर युग' जैनमत का प्रवर्तन और प्रवर्द्धनकाल है, 'महावीर युग जैनमत का विकासकाल' और 'महावीरोत्तर युग' को हम जैनमत का प्रसारकाल कह सकते हैं । इसी क्रम में महावीर युग में ओसवंश का बीजारोपण हुआ और फिर महावीरोत्तर युग में ओसवंश का प्रवर्तन, प्रवर्द्धन, विकास और प्रसार हुआ। इस अध्याय के अन्त में जैनाचार्यों द्वारा प्रतिबोधित गोत्रों को प्रस्तुत किया गया है। तृतीय अध्याय 'ओसवंश : उद्भव' में परम्परागत धार्मिक मत, भाटों और भोजकों का मत और तथाकथित ऐतिहासिक की प्रस्थापना कर उनका गहराई से विवेचन-विश्लेषण किया गया है। लेखक की यह मान्यता है कि तथाकथित ऐतिहासिक मत का आधार लेकर नैणसी मुहणौत से लेकर आज तक ओसवंश के इतिहासको प्रतिष्ठित इतिहासकारोंतकने केवल अनुमानों का सहारा लेकर ओसवंश के आदि पुरुष को उप्पलदेव परमार में ढूंढने की असफल चेष्टा की है। केवल अभिलेखों के आधार पर ही इतिहास की संरचना नहीं हो सकती। मौखिक परम्परा से प्राप्त पट्टावलियों को भी प्रमाण रूप में स्वीकार करना पड़ेगा। अगर इतिहास का आधार स्वीकार करना है तो केवल अनुमानों के सहारे इतिहास का ढाँचा खड़ा नहीं हो सकता। चतुर्थ अध्याय ओसवंश के उद्भूत गोत्र : पूर्व जातियां' में पूर्व जातियों और उनकी वंशावलियों के परिप्रेक्ष्य में यह प्रस्तुत किया कि किन किन पूर्व जातियों से कौन कौन से गोत्र कब कब उद्भूत हुए ? यह मान्य है कि ओसवंश के अधिकांश गोत्र क्षत्रियों और राजपूतों से उद्भूत हुए हैं। ब्राह्मणों, वैश्यों और कायस्थों से उद्भूत गोत्र नगण्य है। अंतिम अध्याय 'जैनमत और ओसवंश : सांस्कृतिक संदर्भ' में इस बात की प्रस्थापना की गई है कि जैनमत और ओसवंश के बीच सांस्कृतिक सेतु है। जैनाचार्यों ने लगभग 2500 वर्षों तक मुख्य रूप से क्षत्रियों और फिर राजपूतों (राजपूतकाल For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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