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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 184 800-895) ने आमराजा को प्रतिबोधित किया। इसमें एक रानी के पुत्र कोष्टागारी थे, उससे कोठारी गोत्र चला। नेमिचंद्रसूरि - आचार्य नेमिचंद्र सूरि ने संवत् 954 में वरडिया गोत्र की स्थापना की। किन्तु श्री सोहनलाल कोठारी के अनुसार 954 वि.सं में पंवार राजपूत लखनजी को प्रतिबोधित कर वरडिया दरड़ा गोत्र की स्थापना की। उद्योतन सूरि ने वर दिया था, इसलिये यह बर्डिया गोत्र कहलाया। ___1369 ई के एक शिलालेख से पता चलता है कि महावीर स्वयं अर्बुदाचल पधारे और 1276 ई के शिलालेख से पता चलता है कि गौतम ने काश्मीर से लौटकर वैश्यों को जैनमत में दीक्षित किया, इसलिये महावीर युग में महाजनवंश के रूप में ओसवंश का बीजारोपण हो चुका था। इसप्रकार श्वेताम्बर परम्परा के विभिन्न गच्छों के विभिन्न आचार्यों ने अनवरत् मुख्यरूप से क्षत्रियों-राजपूतों और आंशिक रूप से अन्य गोत्रों-कायस्थ, माहेश्वरी और ब्राह्मणों आदि को प्रतिबोधित कर ओसवंशी बनाया। जैनमत का सांस्कृतिक संदर्भ ओसवंश के रूप में प्रस्फुटित हुआ। महावीर युग में ही वीरात् संवत् 70 में महाजन वंश के रूप में ओसवंश का बीजारोपण हुआ और महावीरोत्तर युग में विक्रम संवत् 222 में ओसवंश का अंकुरण फूटा और फिर आज तक ओसवंश का प्रवर्द्धन, विकास और प्रसार देख सकते हैं। जैनाचार्यों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अजैनों को जैन बनाकर ओसवंश के प्रस्फुटन में योग दिया। जैनमत का सांस्कृतिक संदर्भ ओसवंश के श्रमणों और श्रावकों में देख सकते हैं। जैनमत द्वारा प्रतिपादित श्रेयस्कर जीवनशैली और जीवनमूल्यों को आत्मसात कर ओसवंशीय महापुरुषों और महिलाओं ने जैनमत की प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि की। __ ओसवंश के उद्भव और विकासको निस्संदेह जैनमत के इतिहास के परिपार्श्व और परिप्रेक्ष्य में रखकर सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। ओसवंश का इतिहास और जैनमत का इतिहास एक दूसरे से पूरी तरह घुले मिले हैं। जैनधर्म यदि एक निबंर्ध झरना है, तो उसके मध्य बहने वाली सरिता ओसवंश है। ओसवंश की निर्झरिणी जैनमत से ही प्रवाहित हुई है। 1. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ167 2. वही, 1165 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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